जैकस कई शराब घर चलाता था। उसके शराब खानों से जहाँ रईस अमीरों के घर शराब बेची जाती थी वहीं गरीब मजदूरों को भी शराब बेची जाती थी। अमीर उमराव तो उसके यहाँ से कोई ज्यादा मात्रा में शराब मँगाते नहीं थे उसके शराब घरों में अधिक ग्राहक गरीब ओर मजदूर पेशा ही आते थे। अपने ग्राहकों को फँसाने के लिए वह बड़ी ही चालाकी से काम लेता था पहले तो अपने आदमियों को उनके पास दोस्ती करने के लिए भेज देता था जो उनसे दोस्ती गाँठ कर उनमें शराब की लत लगवा देते थे और जैकस के नियमित ग्राहक बना देते थे शराबियों के पास कोई पूँजी तो जुट नहीं पाती। अगर होती भी है तो वह धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। फिर अगर वह आदत किसी गरीब आदमी को लगे तो उसके परिवार का अमन चैन भी जाता रहता है। वह अपने परिवार की जरूरतों की उपेक्षाकर शराब पीता रहता। जेकस ऐसे लोगों को उस समय उधार देता था फिर बड़ी बेरहमी से अपना पैसा वसूल करता था। इसलिए लोग जैकस की अनाचारी ओर दुष्ट व्यक्ति के रूप में जानने लगे थे। इस धंधे के अतिरिक्त सम्राट ने उस पर टैक्स वसूली का काम भी छोड़ दिया था। जिस समय वह टैक्स वसूली के लिए निकलता था उस समय तो उसका रूप ही बदल जाया करता था। हाथ में हण्टर व कोड़े लिए जेकस जब भी टैक्स वसूली करने निकलता तो लोग डर के मारे घरों में जा छुपते। जिन पर बकाया टैक्स निकलता था-न दे पाने पर वह उन्हें कोड़ों से पिटवाता और बुरी बुरी यातनाएँ देता।
एक बार उस गाँव में ईसा का आगमन हुआ। लोगों ने बताया कि जेकस बहुत दुराचारी व्यक्ति है और वह ईसा के आने से बहुत क्रुद्ध है। क्योंकि ईसा लोगों को नेक व शराफत की जिन्दगी जीने का उपदेश देते थे। उनके उपदेशों का लोगों पर प्रभाव भी होता था। कईयों ने उनसे प्रभावित होकर शराब, नशा, और कुमार्ग छोड़ा था। जेकस के नाराज होने की बात जब ईसा को पता लगी तो उन्होंने कहा “मैं जेकस के घर जाऊँगा और कल उसी का आतिथ्य ग्रहण करूंगा।”
जेकस को जैसे ही इस बात का पता चला तो उसने जंगल की ओर जाने का कार्यक्रम बना लिया वह ईसा से मिलना नहीं चाहता था, क्योंकि उसने उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व के बारे में तरह-तरह की कहानियाँ सुन रखी थीं। जब ईसा उसके घर पहुँचे तो उन्हें पता चला कि वह तो जंगल में चला गया है। वे भी कहाँ मानने वाले थे उसे खोजते हुए वहाँ पहुँचे जहाँ जेकस था। उसने जब उनको देखा तो बड़ा हैरान हुआ और हैरानी का तब तो और ठिकाना नहीं था जब ईसा ने कहा “जेकस मैं आज तुम्हारा अतिथि बनने के लिए आया हूँ।” ऐसा कह उसे हृदय से लिपटा लिया। पेड़ों की आड़ में चुपके खड़े शिष्य यह सब सुन रहे थे। उन्होंने सोच रखा था कि अब शायद उपदेश शुरू हो। अब सत्संकल्पों के लिए दबाव डाला जाय। किन्तु वहाँ ऐसा तो कुछ भी नहीं था। दोनों ही मौन और भाव भरे नेत्रों से एक दूसरे की ओर देख रहें थे। अन्त में जेकस ने चुप्पी तोड़ी। वह बोला “प्रभो मैं आपके सामने नत मस्तक हूँ आज से आपके सामने संकल्प लेता हूँ कि न तो स्वयं कुमार्ग पर चलूँगा और न दूसरे को प्रेरित करूंगा साथ ही अब तक की अपनी सारी कमाई दरिद्र नारायण की सेवा में अर्पित करूंगा, तथा जिनसे मैंने अनुचित धन प्राप्त किया है उन्हें चौगुना वापस करने का वचन देता हूँ” ऐसा कह ईसा के चरणों में मस्तक झुकाया और उठकर चलता बना।
पेड़ों की आड़ में खड़े शिष्य यह सब क्रियाकलाप देख रहे थे। उन्हें जेकस का व्यवहार देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वे आड़ से निकल ईसा के सामने आए और भौचक्के स्वर में बोले “प्रभु! आपने तो उपदेश भी नहीं दिया फिर यह चमत्कार कैसे घटित हुआ? इतने खतरनाक आदमी को आपने कैसे वश में कर लिया?”
“प्रभावी व्यक्तित्व होता है उपदेश नहीं- मेरे बच्चे! ईसा का स्वर उभरा। बुराइयाँ छोड़ने का संकल्प दिलाने का यथार्थ अधिकार उन्हीं को है जो मन, वाणी अन्तःकरण में पूर्णतया मुक्त हो चुके हैं। तुम में अवश्य ही बुराइयाँ शेष होंगी तभी जेकस ने संकल्प नहीं ग्रहण किया। वस्तुतः कोई व्यक्ति बुरा नहीं होता और न खतरनाक। उससे कुछ भूलें होती हैं जिनका परिमार्जन निश्चित रूप से सम्भव हैं।”