सफलता जिस ताले में बन्द रहती है वह दो चाबियों से खुलता है एक परिश्रम और दूसरा सत् प्रयास। कोई भी ताला यदि बिना चाबी के खोला गया तो आगे उपयोगी नहीं रहेगा। इसी प्रकार यदि परिश्रम और प्रयास का माद्दा अपने अन्दर पैदा नहीं किया तो कोई भी थोपी सफलता टिक न सकेगी।
एक मनोवैज्ञानिक रिच्टर ने अपने लेख “काँकर स्ट्रेन्थ” यानी “शक्ति को जीतो” में लिखा है कि जीवन में किये गये सत्कार्य ही स्वर्ग की घंटी बजाते है। दरवाजा आवश्यक खुलेगा।