अनीति का साम्राज्य देर तक नहीं टिकता

October 1989

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परमब्रह्म निराकार है। उसकी शक्तियाँ अनन्त हैं। उसके व्यवस्था तंत्र में जहाँ पात्रता के अनुरूप अनुदान-वरदान मिलने, विभूतियाँ उपलब्ध होने, अनायास सहयोग मिलने का विधान है, वहीं यह भी सही है कि दुष्ट-दुराचारियों आततायियों को उनके कुकृत्यों के लिए भयंकर दण्ड व्यवस्था भी है। दूसरों के विनाश का तानाबाना बुनने वाले स्वयं बच नहीं पाते, प्रत्युत अधिक हानि ही हिस्से में आती हैं। इसका एक उदाहरण उस समय देखने को मिला जब एक वैज्ञानिक स्वयमेव तोप के गोले के साथ निकल कर अपनी पत्नी से टकराकर चकना चूर हो गया।

पश्चिमी योरोप के केलगाल प्राँत में सन् 1257 ई. में पाँस्थुमस नामक एक बागी सेनापति ने अपनी सैनिक टुकड़ी के माध्यम से भारी लुट पात मचायी। लुटेरे सैनिक स्वयं मालामाल हो गये और अपने सेनापति को रोम का राजा घोषित कर दिया। पर ‘पाँस्थुमस’ की दुर्गति होने में भी अधिक दिन नहीं लगे। सैनिकों की अपनी मनमानी चल ही रही थी। इसी बीच एक बार उनने जर्मनी के एक नगर भेज को लूटने की अनुमति माँगी। अनुमति न मिलने पर उनने सेनापति पाँस्थुमस को गोली से उड़ा दिया और स्वच्छंद होकर लूटपाट करते रहें। इनमें से अधिकाँश की मृत्यु भी द्वारका के यादवों की तरह आपसी लड़ाई में हुई। दैवी सत्ता अनीति के साम्राज्य को अधिक दिनों तक चलने नहीं देती।

उन दिनों रूस में साम्यवादी क्रान्ति चल रही थी। हर क्षेत्र में जागीरदारों, सामन्तों की शामत आयी हुई थी। सेंटपीटर्सवर्ग भी इससे अछूता नहीं बचा। तब वहाँ काउण्ट इवान नामक जागीरदार अपनी पत्नी अन्ना, दो बच्चे एवं एक बूढ़े नौकर के साथ जागीरदारी संभालता था। देखने में जमींदार दम्पत्ति तो बड़े भोले-भाले दिखते थे, पर थे बड़े क्रूर। उनने सैकड़ों व्यक्तियों को अपने क्रूरकृत्य का शिकार बनाया। जब करेलिया-सेंटपीटर्सवर्ग के लोगों में क्रांतिकारी चेतना उभरी तो उनने इवान के विरुद्ध आवाज उठानी शुरू की। भयभीत इवान घर छोड़कर भाग खड़ा हुआ और नेवा नदी के तटीय प्राँत में एक खाली पड़ी झोंपड़ी में शरण ली। इवान का बूढ़ा नौकर भोजन की तलाश में बाहर गया हुआ था। जब लौटा तो अपने मालिक और मालकिन को झोंपड़ी में अचेत पड़ा देखा और पास ही खड़ी थी एक भयंकर काली साया। उसने गरज कर कहा “मल्लाह तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं, किन्तु तुम्हारा स्वामी अब बच नहीं सकता। उसने सैंकड़ों निरपराधों की जानें ली हैं। उसके पाप का घड़ा अब भर चुका है। “इतना कह कर साया ओझल हो गई। एकाएक झोंपड़ी की दीवार गिरने से दोनों की नींद खुल गई तो देखा कि उन पर सील मछलियों ने आक्रमण कर दिया है। जान बचाने की लालख् में सभी नदी की तरफ भागे और किनारे पर बँधी नौका पर सवार होकर नहीं पार करने लगे। बीच धारा में अचानक न जाने आसमान में से कहाँ से लाल रंग की लोमड़ियाँ आ झपटीं। डर के मारे अन्ना नदी में कूद पड़ी और सील मछलियों ने उसका काम तमाम कर दिया। अभी नाव कुछ दूर ही आगे बढ़ी थी कि इवान के साथ भी इसी घटना की पुनरावृत्ति हुई और वह भी नदी में कूद कर अन्ना की गति को प्राप्त हुआ बूढ़ा मल्लाह और दोनों बच्चे बचे रहें जिन्हें उसने पाल पोस कर बड़ा भी किया।

यह सुनिश्चित है कि मनुष्य जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। पर ब्रह्म की निराकार सत्ता के यहाँ कर्मों के लिए दण्ड की व्यवस्था है व उससे कोई बच नहीं सकता।


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