मधु-संचय (Kavita)

October 1989

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अपना दर्द हुआ छोटा जब दिखी और की पीर बड़ी। शक्ति जगी तूफाँ से लड़ने की जब देखी प्रलय खड़ी॥

इंसा है, पहली ठोकर पर गिरता है घबराता है। लेकिन यह भी सच है तभी देखकर चलना आता है॥

पर मानव है वही कि व्यवधानों से जिसकी शक्ति लड़ी॥ खुद की प्यास लखी तो सोचा, है मुझ पर अन्याय बड़ा।

पर मुड़ कर पीछे देखा तो, था भूखा भी व्यक्ति खड़ा।। अपने तो दो ही आँसू थे, उसे देख लग गयी झड़ी॥

जो है नहीं उसे पाने का हम मन से उद्योग करें। पर जो मिला हुआ है उसका भी पूरा उपभोग करें॥

है संतोष-शांति पाने की, जीवनदायी मार कड़ी॥ अपना दर्द हुआ, छोटा जब दिखी और की पीर बड़ी।

शक्ति जगी तूफां से लड़ने की जब देखी प्रलय खड़ी॥

-माया वर्मा

साधना-सामर्थ्य


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