अनुपम उपहार (kavita)

October 1989

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साधना का अनुपम उपहार, सृष्टि का यह सौंदर्य अपार॥ अनवरत चली किसी की साध, जब कहीं हुआ सृष्टि का सृजन।

साधना का क्रम चला अबाध, तभी पा सका सूर्य, शशि गगन। बन सकी तभी व्यवस्थित सृष्टि, साथ-रत रहा सृष्टि करतार॥

साथ से वृक्ष बना है बीज, साथ से हुआ व्यष्टि निर्माण। साथ से बड़ी बनी, ना चीज, मनुज में प्रकटे हैं भगवान॥

साथ से देव-सृष्टि का सृजन, और संभव पालन, संहार॥ आज युग परिवर्तन के लिये, चलो! साधना करें।

स्वार्थ के लिये अभी तक जिये, चलो, सर्वार्थ- साधना करें॥ धरा पर स्वर्ग-अवतरण हेतु साधना ही सक्षम आधार॥

-मंगल विजय

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