वस्तु विकृ न हो पात्र (kavita)

October 1989

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वस्तु विकृ न हो पात्र में, इसलिये है जरूरी बहुत पात्र का मार्जन। दिव्य-अनुदान को साधने के लिये, मित्र! अनिवार्य है व्यक्ति-परिमार्जन॥

वस्तु को क्यों प्रभावित करेगी नहीं, पात्र में जो समाई हुई गंदगी। श्रेष्ठ-अनुदान भी वह कलंकित करे, जी रहा जो पतन, पाप की जिन्दगी॥

हर जगह पात्र का मूल्य होता रखे! इसलिए पात्रता का करें हम वरण। वस्तु विकृत न हो पात्र में इसलिये है जरूरी बहुत पात्र का मार्जन।2॥

व्यक्ति के पात्र में लोभ की, मोह की गंदगी कंठ तक यह यदि समाई हुई। क्रूर छाया कलुष-कल्मषों की अगर व्यक्ति के अन्रंग बीच छाई हुई॥

फिर अनुग्रह किसी संत का क्यों करे, विष भरे पात्र का क्या करे रस-झिरन। दिव्य-अनुदान को साधने के लिये, मित्र! अनिवार्य है व्यक्ति-परिमार्जन॥3॥

दिव्य-अनुदान की वाँछा है अगर, तो चलो मित्र! विकसित करें पात्रता। स्वाति-नक्षत्र का लाभ देने हमें, चाहिये सीपसी रिक्तता, आर्द्रता॥

स्वातिवत् संत फिर कर सकेंगे सहज व्यक्ति की सीप में मोतियों का सृजन। वस्तु विकृ न हो पात्र में, इसलिये है जरूरी बहुत पात्र का मार्जन॥

-मंगल विजय


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