बदमिजाज क शहद कड़वा होता है(Kahani)

April 1988

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एक छैल–छबीला आदमी शहद बेचा करता था। उसकी वाणी में इतनी मिठास थी कि खरीददार उस पर मक्खी की तरह टूट पड़ते थे।

एक बदमिजाज आदमी ने उसे देखा और डाह करने लगा। उसने सोचा क्यों न मैं भी यही धन्धा कर लूँ?

दूसरे दिन वह भी शहद का मटका सिर पर लेकर घर से निकल पड़ा। आदत के अनुसार उसके माथे पर तैयारियां पड़ी हुई थी। वह ध्यान से दरवाजों की ओर देखता कि शायद कोई मुझे पुकार न रहा हो। पर ज्यों ही उसकी नजर किसी औरत या मर्द से टकरा जाती, उसे देखने वाला मुँह फेर लेता।

शहद बेचने वाला परेशान था। वह दिन भर चिल्ला-चिल्लाकर आवाज देता रहा--’शहद ले लो, शहद।’ पर उसकी आवाज इतनी तीखी थी कि सुनने वालों के दिल में घिन पैदा कर रही थी।

सारा दिन शहद का मटका लिए-लिए वह भटकता रहा। आखिर थक कर वह चूर हो गया और फिर उसने घर की राह ली।

घर में बीबी उसकी सूरत देखकर सारा किस्सा भाँप गई और हँसी करते हुए बोली ‘बदमिजाज का शहद भी कड़वा होता है, मियाँ। अगर तुम्हारे पास सोना-चाँदी नहीं तो क्या तुम अपनी वाणी में मिठास भी पैदा नहीं कर सकते?’

रसना का जादू ऐसा है कि जहाँ मीठी वाणी से लोग खिंचे चले आते हैं वही कड़वी जबान दूसरों के दिल में नफरत का जहर घोल देती है।


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