एक उदारचेता, सभी समुदाय के लोगों को एकत्रित देखना चाहते थे सो उन्होंने मंदिर बना दिया।
मंदिर में हिंदू तो आये पर मुसलमानों ने उसमें पैर भी न रखा। बाद में उन्होंने मस्जिद बनवाई और हिन्दुओं से कहा वे उदारता दिखायें और उसमें जाया करें। उनने भी मस्जिद में जाने से इन्कार कर दिया।
दोनों निर्माणों से उद्देश्य पूरा न होते देखकर उनने एक पाठशाला और व्यायामशाला बनाने का तीसरा उपक्रम किया। उसमें सभी वर्गों के लोग पहुँचने लगे। तब कहीं उन्हें संतोष हुआ।