मधुर घंटियों की झंकार (Kahani)

April 1988

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दो पादरी एक पहाड़ी रास्ते जा रहे थे। दूर शिखर पर बने देवताओं के एक चर्च से बड़ी मधुर घंटियां बज रही थी।

एक पादरी ने दूसरे से कहा-इन मधुर घंटियों की झंकार में मैं भाव-विभोर हुआ जा रहा हूँ। तुम्हें कैसा लग रहा है?

दूसरे ने कहा-इस ध्वनि ढपढप से मेरे कान बहरे हुए जा रहे हैं। यह धमाल बन्द हो तो तुम्हारी बात सुनूँ।


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