कस्तूरबा उन दिनों अस्वस्थ थीं। स्वास्थ्य सुधारने के कितने ही प्रयत्न हो चुके थे पर सभी निष्फल गये। एक दिन गाँधी जी ने दाल और नमक छोड़ने की सलाह दी। अपनी बात के समर्थन में स्वास्थ्य सम्बन्धी साहित्य के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाये पर “बा” उनकी बात मानने को तैयार नहीं हुई। उन्होंने झुँझलाते हुए कहा- ‘‘आप मेरे इतने पीछे पड़े हैं दाल और नमक तो आप भी नहीं छोड़ सकते।”
गाँधीजी को यह बात चुभ गयी, अच्छी बात है तुम नहीं छोड़ना चाहती तो मत छोड़ो। मैंने आज से एक वर्ष के लिये दोनों ही वस्तुएँ छोड़ दीं। गाँधी जी को “बा” के प्रति व्यक्त करने का यह अपूर्व अवसर मिला था, इसे वह सहज छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा यदि मैं अस्वस्थ होता और मेरा चिकित्सक इस प्रकार का परहेज करने के लिये कहते तो मैं खुशी-खुशी तैयार हो जाता।
गाँधीजी की एक साल तक नमक और दाल छोड़ने की प्रतिज्ञा ने कस्तूरबा को यह समझाने में सफलता प्राप्त की संयम कुछ भी कठिन नहीं, वरन् सरल है और लाभदायक भी।