‘अखण्ड-ज्योति’ परिजनों में से कितने ही ऐसे भी हैं जिन्हें विशिष्ट, वरिष्ठ, प्रतिभाशाली एवं विभूतिवान कहा जा सकता है। उनसे इन दिनों अतिरिक्त रूप से आग्रह किया गया है कि वे अपनी विभूतियों को इन दिनों युग-सृजन की दिशा में भी मोड़ने का प्रयत्न करें और जितना संभव हो उतना अनुदान-अंशदान इस पुण्य प्रयोजन के लिए प्रस्तुत करने का साहस जुटायें।
इस वर्ग के लोगों के लिए कुछ काम इस प्रकार छोड़े गये हैं- (1) युग साहित्य भारत की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में प्रकाशित किया जाना है। अब 24 पैसा मूल्य की 360 पुस्तिकाएं हर वर्ष लिखी और छापी जाया करेंगी। प्रज्ञा-पुत्र योजना के अंतर्गत उन्हें जन-जन तक पहुँचाया जाया करेगा। यह साहित्य मूलतः हिन्दी में लिखा जायेगा। बाद में उसका अनुवाद अन्य भाषाओं में छपा करेगा। आरम्भ में यह अनुवाद उत्तर की भाषाओं में किया जा रहा है। बाद में उसे दक्षिण भारत की भाषाओं में छापा जायेगा। इसी वर्ष अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, बंगला, उड़िया, भाषाओं में अनुवाद कराने तथा छापने का काम हाथ में लिया जा रहा है। अखण्ड-ज्योति परिजनों में से जिनका उपरोक्त भाषाओं पर अच्छा अधिकार हो, जो हिन्दी भी अच्छी तरह से समझते हों और स्तर का अनुवाद कर सकते हों, वे अपनी सेवायें इस कार्य के लिये प्रस्तुत करें।
(2) लोक रंजन और लोक मंगल का समन्वय करके कला मंच का अब जन-जागरण के निमित्त लगाने की एक नई योजना हाथ में ली जा रही है। इसके अंतर्गत सुगम संगीत के प्रशिक्षण की क्षेत्रीय भाषाओं में प्रेरणाप्रद गीत लिखाने छापने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जायेगी। एक्शन सांग, बेले एकाकी जैसे नृत्य, अभिनय लिखे और प्रदर्शित किये जायेंगे। इसके लिये छोटी-छोटी नाट्य-मंडलियां गठित होंगी और वे अपने-अपने क्षेत्र में काम करेंगी। संगीत सम्मेलन, कविता सम्मेलन, भाषण-प्रतियोगिता जैसे आयोजनों का योजनाबद्ध विस्तार किया जायेगा। इस संदर्भ में जिसकी गति हो उन्हें अपना सहयोग देकर इस योजना को अग्रगामी एवं सफल बनाने में सहायता करनी चाहिए।
(3) प्रज्ञापीठें बड़ी संख्या में बन रही हैं। उन सब के वार्षिकोत्सव होंगे। उनका स्वरूप क्षेत्रीय मेलों जैसा करने का विचार है। प्रवचन सुनने में थोड़े से लोगों की ही रुचि होती है, किन्तु मेले में सभी वर्गों के लोग बड़ी संख्या में पहुँचते हैं। उन सबको मनोरंजन, खरीद बेच के अतिरिक्त विचारोत्तेजक वातावरण भी मिल सके, इसके लिये प्रचार प्रदर्शन के कुछ मनोरंजक उपकरणों का प्रयोग किया जाना है। चित्र प्रदर्शनी कठपुतली, नाटक, चलते-फिरते सिनेमा जैसे कितने ही माध्यम इसके लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। एक छोटे मेले के लिये एक ट्रक भरकर सामान इधर से उधर लाया ले जाया जाता रहे तो उतने भर से एक छोटे मेले की पूर्ति हो सकती है। इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए अनुभवी अभ्यस्त तथा साधन जुटा सकने में समर्थ लोगों को आमंत्रित किया जा रहा है।
(4) स्लाइड प्रोजेक्टर, नाटकों के पर्दे, चित्र-प्रदर्शनी, स्टेन्सिल लिखने काटने आदि के लिए नये-नये चित्र बनाने की आवश्यकता पड़ती रहेगी। इसके लिये जिनके हाथ साफ हों, ऐसे चित्रकारों का सहयोग इन्हीं दिनों अपेक्षित है।
(5) एक वर्ष के लिये नव-सृजन के निमित्त समय दान की याचना सभी विचारशील से की गई है। जिनकी उपार्जन की जिम्मेदारी पूरी हो चुकी, या लदी नहीं है वे इन दिनों एक वर्ष का समय प्रज्ञा संस्थानों के संचालन था केन्द्र की बहुमुखी प्रवृत्तियों में सहयोग देने के लिये देने की कृपा करें। उससे उनका व्यक्तित्व निखरेगा और युग धर्म का परमार्थ निर्वाह भी बन पड़ेगा। इस प्रयोजन में लगने पर खाली समय को अभिशाप के स्थान पर वरदान में परिणित किया जा सकता है।
(6) पिछले दिनों कितने ही सज्जनों ने अपने नाम वानप्रस्थों में, परिव्राजकों में, समयदानियों में पंजीकृत कराये हैं। उन सबसे अनुरोध है कि उस वचन का इन दिनों पालन करें। और सन् 81 में जितना अधिक समय दे सकना संभव हो सके उसका तारतम्य बिठाकर अपने निश्चय की सूचना केन्द्र को भेजें।
(7) युग संधि के द्वितीय वर्ष में जिन बहुमुखी प्रवृत्तियों को हाथ में लिया जा रहा है। उनके लिये पूँजी जुटाने की भार कठिनाई सामने है। जिनके लिये संभव हो वे अनुदान एवं उधार के रूप में हाथ बंटाने की उदारता बरतें। बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का शिक्षण एवं निर्वाह इन दिनों पैसे की माँग करता है, अपने स्थान पर इन कार्यकर्ताओं के लिये साधन प्रस्तुत करके भी स्वयं कुछ करने जैसा पुण्य अर्जित किया जा सकता है।