यह विश्व संगीतमय है। शब्द से जिसकी उत्पत्ति हुई है, ऐसी चराचर सृष्टि के विराट् विश्व संगीत में सूर्य, चन्द्र, तारे, जीव-जन्तु वनस्पति सदैव अपना विशेष सुर बजाते रहते हैं। जिस प्रकार वीणा का कोई तार मध्यम, कोई पंचम में बाँधा जाता है, ताकि उसमें से विभिन्न प्रकार के स्वर निकलें, उसी प्रकार हमें ईश्वर के साथ विशेष सम्बंध स्थापित करना होता है, कोई एक विशिष्ट सुर जगाना होता है ताकि मानव जीवन भी संगीत युक्त हो, प्रवाहमान बने।ll
एक अपूर्ण व्यक्ति वही है जिसके जीवन को अभी तार सप्तक में नहीं बाँधा गया। उसके जीवन के मूलतार तुच्छता के कारण विच्छिन्न हो गये हैं। किसी भी प्रकार उन्हें क्रमबद्ध कर एक नित्य सुर को ध्रुव बनाना होगा, इसी में उस मानव का कल्याण है।
तार को बाँधा कैसे जाय? ईश्वर की वाणी में इसे बाँधने के ऐसे अनेकों स्थल हैं। इन्हीं में से किसी एक को निश्चित करना होगा।
मन्त्र एक इसी प्रकार का बंधन है। मंत्र द्वारा मन के विषय को समष्टि मन के साथ जोड़ा जा सकता है जैसे वीणा की खूँटी से तार बाँध दिया जाता है, फिर वह छटकता नहीं। ईश्वर के साथ मानव का जो ग्रंथि बंधन किया गया है, उसमें मंत्र ही मदद करता है। ऐसा ही एक मंत्र है “पितानोऽसि”। जीवन को इस सुर में बाँधने से हमारे सारे विचारों और कार्यों में एक विशेष रागिनी बज उठती है। “मैं उनका पुत्र हूँ” यह मंत्र ही संगीत रूप में मूर्तिमान होकर शरीर के हर तार से झंकृत होने लगता है।