नैतिकता का संबंध धर्म धारणा से है।

April 1981

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यह प्रतिपादन अब बहुत पुराना हो गया, जिसमें कहा जाता था कि निर्धनता ही अनैतिकता का कारण है। ‘खाली बोरा खड़ा नहीं रह सकता’ की उक्ति इसी आधार पर प्रचलित हुई कि गरीब आदमी ईमानदार नहीं रह सकता। इस प्रतिपादन में आँशिक सत्य ही है उसे तथ्य मानकर नहीं चला जा सकता।

यह ठीक है कि गरीबी के कारण जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता पूरी न होने पर मनुष्य के अनीति के उपाय अपनाकर निर्वाह के साधन ढूंढ़ निकालने की इच्छा हो सकती है। इसकी बहुत कुछ संभावना भी है, पर इसे कोई तथ्य मानकर नहीं चला जा सकता। यदि ऐसा रहा होता तो सन्त और ऋषि जो अपरिग्रह अपनाकर अभावग्रस्त जीवन जीते रहे वे वैसा क्यों कर पाते। अभाव उन्हें अनीति की ओर ललचाते और कैसे ही उपाय अपनाकर अपने अभाव दूर करते।

इसी प्रकार यह कथन ही अंशतः ही सत्य है कि- ‘शिक्षा के बिना प्रगति नहीं हो सकती।’ यह सही है कि अशिक्षितों की तुलना में शिक्षित, अधिक कमाऊ, कुशल तथा अधिक जानकार हो सकते हैं इतने पर भी चारित्रिक दृढ़ता के संबंध में यह सोचना गलत है कि जो शिक्षित होंगे पिछड़े ही बने रहेंगे।

प्रगतिशीलता और पिछड़ेपन का विवेचन यदि अमीरी ठाठ-बाठ होने न होने से किया जाय तो बात दूसरी है अन्यथा यदि व्यक्तित्व और चरित्र के आधार पर इसकी परख की जाय तो कुछ दूसरे ही तथ्य सामने आते हैं। तब इस निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि नीतिमत्ता एक भिन्न वस्तु है और उसका सीधा संबंध सम्पन्नता या शिक्षा से नहीं वरन् उस आदर्शवादी निष्ठा से है जिसे नीति धर्म, श्रद्धा या आस्तिकता कहते हैं। इसके अभाव में धनी, निर्धन- शिक्षित, अशिक्षित दोनों ही वर्ग गये गुजरे स्तर के अनीति अपनाने वाले एवं अपराधी हो सकते हैं।

उदाहरण के लिये सम्पन्नता आर शिक्षा की दृष्टि से अमेरिका को इन दिनों मूर्धन्य माना जाता है। वैज्ञानिक प्रगति और सुविधा साधनों की दृष्टि से भी उसे विश्व के राष्ट्र समुदाय में प्रमुखता मिली हुई है। इतने पर भी वहाँ नीतिमत्ता को जन-जीवन में वैसा स्थान नहीं मिल सका जैसा कि सम्पन्नता और शिक्षा को ही सब कुछ मानने वाले कहते हैं।

गत वर्ष मध्य अमेरिका की कुल आबादी 4,00000 है। जिसमें 1,13,05,000 अपराध हुए। जिनमें 9 लाख 87 हजार हिंसात्मक थे शेष 1 करोड़ 31 लाख 8 हजार यौन संबंधी थे। गत वर्ष 18,800 हत्यायें, 56700 बलात्कारपूर्ण व्यभिचार, 9,11000 आक्रमण, 30,90,000 बड़ी चोरियां तथा 6271,000 छोटी चोरियां हुईं। वर्ष भर में 9,58,000 कारें चुराई गईं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रस्तुत की गई यह संख्या संसार के अन्य धनी निर्धन देशों की तुलना में अनुपाततः कहीं अधिक है। गैर सरकारी आंकड़े इसके अतिरिक्त हैं। सभी अनीति युक्त घटनाएं पुलिस और अदालतों में कहाँ पहुँच पाती हैं।

यहाँ किसी देश विशेष की निन्दा स्तुति करने का प्रयोजन नहीं। मात्र यह कहा जा रहा है कि ‘नीतिमत्ता’ एक स्वतंत्र विषय है और उसे चिंतन में उत्कृष्टता का समावेश करने वाली धर्म धारणा से संबंधित समझा जाना चाहिये। ऋषियों की तरह निर्धनता के रहते हुये भी उच्च चरित्र रखा जा सकता है और ऊंचे पदों पर रहने के कारण ऊंचा वेतन पाने पर भी रिश्वत से घर भरते रहने वालों की तरह धनवान अनैतिक भी हो सकते हैं।


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