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October 1978

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रेशम का कीड़ा अपना सर्वस्व अर्पित कर सुरक्षा के लिए अपने चारों ओर जाल बुनता है, पर कुछ ही समय बाद वह उसी जाल में बन्द हो समाप्त हो जाता है।

सांसारिक प्राणी की भी यही गति है। मनुष्य अपनी प्रसन्नता के लिए जिस माया का जाल रचता है अन्त में वही माया-जाल उसे लील जाता है।

-रामकृष्ण परमहंस

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