इस संसार में रहस्य कुछ नहीं,सर्वत्र नियम और व्यवस्था ही है।

October 1978

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इस संसार की समस्त गतिविधियाँ सुव्यवस्थित रीति से चल रही हैं। प्रकृति के नियम ऐसे हैं जिनमें व्यतिरेक की तनिक भी गुंजाइश नहीं है। जिन नियमों को हम जानते हैं, उन्हें सामान्य समझते हैं। जिनका पता अभी तक चल नहीं पाया है, उन्हें रहस्य कहते हैं। रहस्य का तात्पर्य उन घटनाक्रमों से है जो असामान्य होते हैं और जिनके घटित होने के कारणों का पता नहीं है।

ऐसे घटनाक्रमों को दैवी कहकर सन्तोष कर लिया जाता है। अभी भी सूर्य और चंद्रग्रहण को असाधारणतः कोई दैवी प्रकोप समझा जाता है। बिजली का कड़कना पिछड़े इलाकों में देवता दैत्यों के विग्रह का प्रतीत है। विज्ञान के विद्यार्थी इन्हें प्रकृति क्रम की एक नियत विधि व्यवस्था के अन्तर्गत प्रकट होने वाले सामयिक घटनाक्रम मात्र मानते हैं। उन्हें ऐसे कारणों में आश्चर्य जैसी कोई बात प्रतीत नहीं होती।

मिस्र के पिरामिडों को ‘जादुई’ माना जाता है और उनके निर्माण की अलौकिकताओं का सम्बन्ध किन्हीं दैवी-देवताओं के साथ जोड़ा जाता है। अब उन आधारों का पता लगाया जा रहा है जिनके सहारे इन निर्माणों में कई प्रकार के ‘अद्भुत’ दृष्टिगोचर होते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक विज्ञानी ऐरिक मेहलोइन ने यह सिद्ध किया है कि पिरामिडों में पाई जाने वाली सभी अलौकिकताएँ आज भी उन्हीं वैज्ञानिक नियमों के आधार पर खड़ी की जा सकती हैं जिनके सहारे कि वे प्राचीन काल में की गई थीं। उनने अठारह इंच ऊँचा एक पिरामिड मॉडल प्लेक्सोग्लास का बनाया है उसके भीतर मांस के टुकड़े तथा अन्य पदार्थ उसी स्थिति में रखे गये जैसे कि पिरामिडों में रखे हुए हैं। प्रायः सभी पदार्थ वही प्रतिक्रिया उत्पन्न करने लगे जो उन प्राचीन निर्माणों में पाई जाती और जादुई कही जाती है।

ताबूतों में बन्द ‘ममी’ हजारों वर्ष बाद भी क्यों सुरक्षित है? इन्हें पिछले लोग भूत-प्रेतों की चौकीदारी मानते थे, पर अब प्रतीत हुआ है कि जैसा वातावरण पिरामिडों के बाहर और भीतर है वैसा ही बना लेने पर मांस की सड़न रुक सकती है और वैसे ही रहस्य दृष्टि गोचर हो सकते हैं जैसे कि पिरामिडों की कथा-गाथाओं के साथ जुड़े हुए हैं।

आग के बारे में यह मान्यता सर्वविदित है कि उसके जलने के लिए ईंधन और ऑक्सीजन दोनों की आवश्यकता है। वे दोनों जब तक उपलब्ध रहेंगे तब तक आग जलेगी एक भी समाप्त हो जाने पर वह बुझ जायगी, किन्तु ऐसे प्रमाण भी मिले हैं जिनमें इस सर्वविदित मान्यता का खण्डन होता है। मामूली आकार के दीपकों में भरी हुई चिकनाई कुछ घण्टों ही जल सकती है, पर यदि कोई छोटा दीपक सैकड़ों वर्षों तक जलता रहे तो ईंधन के आधार पर अग्नि प्रज्ज्वलन का सिद्धान्त कट जाता है, यही बात ऑक्सीजन के सम्बन्ध में भी है। एक बन्द सन्दूक के भीतर की हवा दो चार दिन ही काम दे सकती है उतने से घेरे की हवा सैकड़ों वर्षों तक किसी दीपक का काम दे सकती है इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। तो भी ऐसे प्रमाण पाये गये हैं जो अग्नि विज्ञान को प्रचलित मान्यताओं के सही-गलत होने के सम्बन्ध में प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।

इतिहासकार विलयम कैमडन ने अपनी पुस्तक ‘ब्रिटेन’ में पुराने खण्डहरों में खुदाई में मिले ऐसे जलते दीपकों का वर्णन किया है जो सैकड़ों वर्षों से बन्द खिड़की के भीतर जलते चले आ रहे थे। कैमडन ने इस आश्चर्य का समाधान यह लिखकर किया है कि प्राचीन काल के रसायनवेत्ता सोने को पिघलाकर तेल जैसा बना देते थे उसी से यह दीपक सैकड़ों वर्षों तक जलते थे। सेन्ट अमास्टाइन ने अगली संस्मरण पुस्तक में लिखा है कि देवी वीनस के मन्दिर में ऐसा अखण्ड दीपक खुली जगह में जलता था जिस पर वर्षा और तेज हवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। पुरातत्व विभाग ने सन् 1840 में स्पेन कुर्तण क्षेत्र की एक कब्र को खोदकर जलता दीपक उपलब्ध किया था। उस ज्योति को कई सौ वर्षों से जलती आ रही माना गया है।

इटली के नसीदा द्वीप में एक किसान ने अपने खेत में एक कब्र पाई थी। उसे खोदकर देखा गया तो काँच के बरतन में बन्द एक ऐसा दीपक पाया जो मुद्दतों से उसी में बन्द जल रहा था। इतिहासकार ऐसेलाईस ने ऐस्टेनाग की खुदाई में निकला एक कब्र का वर्णन किया है, जिसमें जलता हुआ दीपक पाया गया। उसके पास ही अभिलेख पाया गया, जिसमें लिखा था-खबरदार कोई दीपक को छुए नहीं यह देवता पलोटी का उपहार है। ऐसेलाईस ने इस दीपक को चौथी शताब्दी में जलाया गया माना है।

अनुसन्धानकर्त्ता ओडोपेन्सी रोलेस ने सम्राट् कान्स्टेट क्लोर्स के राजमहल का वर्णन किया है और लिखा है उसमें कभी न बुझने वाले दीपक जला करते थे उनमें मामूली तेल नहीं वरन् कोई विशेष रासायनिक पदार्थ जलता था। सिसरो की वेटी टोल्या की कब्र में भी एक ऐसा ही दीपक पाया गया था जो बिना तेल और हवा के जल रहा था। उसे हवा में निकाला गया तो तुरन्त ही बुझ गया।

उड़न तश्तरियों के सम्बन्ध में पिछले 30 वर्षों से बहुत चर्चा चली है। उनके आँखों देखे विवरण इतने अधिक छपे और रिकार्ड किये गये हैं कि उन्हें कपोल कल्पनाएँ मनगढ़न्त कहकर झुठलाया नहीं जा सकता। आँखों न देखा गया जो काण्डरों और कमराओं ने उन्हें क्यों अंकित किया? अप्रैल 77 में उड़न तश्तरियों के सन्दर्भ में विचार करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय अमेरिका में सम्पन्न हुई। उनमें अनुसन्धानकर्त्ताओं ने अपने विभिन्न निष्कर्ष बताये। उनमें से एक शोधकर्त्ता सालवाडोर फ्रीक्सेडो ने कहा-अच्छा हो यह शोध भौतिक विज्ञान तक सीमित न रहे इसमें आत्म-विद्या विशारद भी भाग ले और तलाश करे कि क्या इसमें किन्हीं प्रत्यक्ष या अदृश्य प्राणियों की हलचलें तो जुड़ी हुई नहीं हैं?

अन्तरिक्ष विज्ञानी एलने हाईनेक का कथन है-वे भौतिक क्षेत्र की ही इकाइयाँ हैं। अभी बहुत से प्रकृति रहस्य जाने जाने के लिए शेष है। उन्हीं में से एक उड़न तश्तरियों का प्रसंग भी सम्मिलित रखा जाना चाहिए और उस सन्दर्भ में धैर्य और प्रयत्नपूर्वक प्रयत्न किया जाना चाहिए।

अमेरिकी वायु सेना के एक जाँच कमीशन ने अपने देशवासियों को आश्वस्त किया था कि वे जो भी हों सार्वजनिक सुरक्षा के लिए उनसे कोई खतरा नहीं है। इतने पर भी जनता को कोई समाधान न हो सका और यह भय बना ही रहा कि यदि वे कभी नीचे उतर आईं तो न जाने क्या कहर बरसाने लगेंगी।

मानसिक रोग और स्नायविक दुर्बलता से उत्पन्न ज्ञान तन्तुओं की विकृतियाँ भूत-पलीतों का सृजन करती हैं। किम्वदन्तियों और अन्धविश्वासों का जाल-जंजाल उन्हें इस प्रकार धुंए से बादल गठ देता है मानो वे सचमुच ही चोर उचक्कों की तरह हर किसी को परेशान करने पर उतारू हो रहे हों।

जादूगरी, बाजीगरी के अनेक खेल लोगों को अचम्भे में डाल देते हैं और लगता है वह किसी जिन्न दैत्य की करामात है। इसका खण्डन प्रायः भले बाजीगर करते भी रहते हैं और यही बताते हैं कि यह केवल हाथ की सफाई है फिर भी कितने ही अन्धविश्वासी उन्हें चमत्कार ही कहते रहते हैं।

स्मरण रखने योग्य यही है कि विश्व ब्रह्माण्ड आपने आप में रहस्य है। उसके नियम विधान भी रहस्य जैसे हैं उसके अतिरिक्त वैसा कोई रहस्य नहीं है जैसा कि अन्धविश्वासी क्षेत्र में फैला हुआ है।


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