थोड़ी देर के लिये मनुष्य की बात छोड़ दें और जीव जगत की कल्पना करें तो वहाँ “शक्तिमान के ही जीवित रहने” के अधिकार की पुष्टि होती है। मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि और विवेक के दो विशिष्ट उपहार दिये हैं। इसलिये उसे तो विसंगति श्रेणी में रखना तथा सहयोग और सहकारिता में समृद्धि सुव्यवस्था का पाठ पढ़ाना पड़ेगा, पर यदि वह अपनी इस ईश्वर प्रदत्त विशेषता का अपने जीवन में उपयोग न कर पशुओं का ही पेट-प्रजनन वाला जीवन जीने लगे तो जो व्यवस्थाएं प्रकृति में चल रही हैं, वैसे ही परिणाम से मनुष्य भी बच नहीं सकता।
हाथी संसार का अति सामर्थ्यवान प्राणी है। विश्वास करें या न करें, पर अफ्रीका में मोम्बासा से कीनिया को जो सड़क जाती है उस पर एक प्रवेश द्वार मात्र दो जोड़े हाथी दाँत का बना है। ये दाँत इतने विशाल हैं कि बस और भारी बोझ लदे ट्रक भी उसके नीचे से आसानी से निकल सकते हैं। जिन हाथियों के इतने विशाल और मजबूत दाँत होंगे, उनके शरीर की सामर्थ्य कितनी होगी, उसका अनुमान करना कठिन है। हाथियों में जो सामर्थ्य द्वापर और त्रेता में थी वही आज भी विद्यमान है। उसका कारण प्रकृति का पक्षपात नहीं उसकी अपनी संयम शक्ति है जिसने इस समूची जाति को युग-युगों तक अपनी सामर्थ्य और अपनी सत्ता बनाये रखने योग्य बना दिया है।
एक हाथी युगल अपने जीवन काल में अधिकतम दो या तीन बच्चों को जन्म देता है। यह उल्लेखनीय है कि प्राकृतिक जीवों में प्रायः एक ही बार के सहजीवन से गर्भाधान की क्रिया सम्पन्न हो जाती है। स्पष्ट है कि उसके सहजीवन की संख्या सारे जीवन में अधिकतम पाँच से अधिक नहीं होती। अपनी इस विशेषता के कारण कहीं भी उनकी जनसंख्या के विस्फोट की समस्या नहीं उठी। इतने जंगल कट जाने पर भी उनके लिये कभी खाद्य का अभाव नहीं पैदा हुआ।
यही स्थिति बलशाली दूसरी सभी जातियों की है जिनमें सिंह, चीते, बाघ भी आते हैं। राजहंस पक्षी अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण कभी भी संख्या के विस्फोट की स्थिति में नहीं पहुँचा, उसे प्रकृति के अत्यन्त प्रिय उपहार के रूप में सम्मानित किया जाता है।
मछली-मछली है मनुष्य-मनुष्य, पर प्रकृति की दृष्टि में दोनों एक हैं। यदि मनुष्य संयमित जीवन जीने के लिए तैयार नहीं होता तो उसे भी एक दिन ऐसे ही सर्वनाश की तैयारी प्रारम्भ कर देनी होगी। इन दिनों मानवीय सद्भाव में जो व्यापक अभाव दिखाई देने लगा है उसे विनाश पूर्व की चेतावनी समझा जा सकता है।
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