महर्षि चरक (kahani)

October 1978

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महर्षि चरक औषधियों की खोज में निकले थे। रास्ते में उन्हें एक विचित्र फूल दीखा। शोध के लिए उसे तोड़ना उचित प्रतीत हुआ, पर वे खेत की मेंड़ पर जाकर ही ठिठक गये।

शिष्य ने पूछा इसे लाने में क्या कठिनाई है, मैं अभी तोड़ लाता हूँ।

चरक ने कहा-नहीं, हमें बिना खेत के मालिक से पूछे इसे नहीं तोड़ना चाहिए। शिष्य ने कहा-आपको तो राजाज्ञा मिली हुई है कि कहीं से भी कोई भी वनस्पति तोड़ लें। फिर किसान से पूछने की क्या आवश्यकता।

महर्षि ने कहा-राजाज्ञा के आधार पर यदि भूमि के मालिक की उपेक्षा की गई तो नैतिक आदर्श कहाँ रहेगा?

चरक एक योजन रास्ता चलकर किसान के घर गये और उससे स्वीकृति लेकर ही फूल तोड़ा।

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