आत्मोत्कर्ष के लिए साधन स्वाध्याय, संयम, सेवा उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार शरीर निर्वाह के लिए, भोजन, शयन, श्रम और मल विसर्जन। इन चारों में से एक भी ऐसा नहीं जिसके बिना काम चल सके या एक के बल पर ही आत्मिक प्रगति का लक्ष्य पूरा हो सके।
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