कुछ आवश्यक ज्ञातव्य एवं अनुरोध

October 1978

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(1) बसंत पर्व से लेकर अब तक पाँच आयोजन सम्पन्न हो चुके। बसन्त पर्व, गायत्री जयन्ती, गुरुपूर्णिमा पर एक-एक दिन के अखण्ड जप वाले आयोजन सभी समर्थ शाखाओं में उत्साहपूर्वक मना लिये गये। विगत चैत्र की नवरात्रियों के दो दिन वाले साधना सत्र भी उत्साहपूर्वक मनाये गये और यह अंक पाठकों के पास पहुँचते-पहुँचते आश्विन नवरात्रि पर्व पिछले सभी आयोजनों की तुलना में और भी अधिक उल्लास भरे वातावरण में मनाया जा रहा होगा।

इन पर्वों में जिन लोगों ने भाग लिया हो उन्हें इस वर्ष के श्रद्धालु साधक कहना चाहिए। इन सबकी सूची को सामने रखकर नये- पुराने परिजनों का वर्तमान परिवार माना जाय और दस-दस की टोलियों में इनका पुनर्गठन कर लिया जाय। टोली नायक आवश्यकतानुसार पुराने भी रह सकते हैं और सुविधानुसार नये भी बनाये जा सकते हैं। यह टोलियां हर वर्ष आश्विन नवरात्रियों के बाद पुनर्गठित की जाया करेंगी। साहस बढ़ता है तो सामान्य सदस्य टोली नायक की भूमिका निभाने लगते हैं। कुछ परिस्थितिवश कुछ विशेष समयदान नहीं कर पाते, ऐसी दशा में उनका स्थान बदलना ही चाहिए। यह हेर-फेर इस वर्ष आश्विन नवरात्रि के बाद ही कर लिया जाना चाहिए। नई टोलियाँ जिस प्रकार गठित हों, जो नये टोली नायक बनें उनकी सूचना गायत्री तपोभूमि में मथुरा के पते पर भिजवा देनी चाहिए।

(2) गायत्री महाविज्ञान अब से तीस वर्ष पूर्व छपा था। इसके बाद शास्त्रों के अनुसंधान, तपस्वियों के अनुभव तथा साधकों पर किये प्रयोगों के आधार पर गायत्री विद्या की जो नई जानकारी संकलित हुई है वह भण्डागार हर दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण, अनुपम एवं असाधारण है। इसका प्रकाशन ‘युग शक्ति गायत्री’ मासिक पत्रिका के रूप में विगत जुलाई मास से युग निर्माण योजना द्वारा हो रहा है। वार्षिक मूल्य दस रुपया है। इस पत्रिका का प्रकाशन (1) हिन्दी (2) गुजराती (3) मराठी (4) उड़िया (5) अंग्रेजी (6) पंजाबी (7) बंगाली, इन सात भाषाओं में हो रहा है। अगले वर्ष दक्षिण भारत की तीन भाषाओं में भी होने लगेगा।

गायत्री विद्या में जिन्हें अभिरुचि हो, उन सभी के लिए इन पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाली अभिनव जानकारी हर दृष्टि से नितान्त उपयोगी है। वे इनके ग्राहक स्वयं बनें तथा इस महान ज्ञान को व्यापक बनाने के लिए अपने-अपने सम्पर्क क्षेत्र में नये सदस्य बनने का नये उत्साह के साथ प्रयत्न करें।

(3) इस वर्ष देश के कोने-कोने में गायत्री महापुरश्चरणों सहित युग निर्माण सम्मेलन हो रहे हैं। इनमें प्रवचन उद्बोधन के लिए गायत्री तपोभूमि के कुशल वक्ता पहुँचेंगे। इसके साथ ही संगीत गायकों की भी आवश्यकता पड़ेगी। यह आयोजन प्रायः नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी, फरवरी, इन चार महीनों में ही पूरे हो जायेंगे। इनमें भेजने के लिए गायक मिशन के पास नहीं हैं। अखण्ड-ज्योति परिवार के कुशल संगीत गायकों में से जो अपना समय इन चार महीनों में जितना दे सकें, वे शान्ति-कुँज के पते पर पत्र व्यवहार कर लें। यह समयदान इन दिनों अधिक आवश्यक प्रतीत हो रहा है। संगीत गायकों का इन पंक्तियों द्वारा विशेष रूप से आह्वान किया जा रहा है।

(4) आश्विन नवरात्रि के अनुष्ठानकर्त्ता अपनी साधना का संरक्षण परिमार्जन करने के लिए समय से पूर्व ही अपने निश्चय की जानकारी शान्ति-कुँज पहुँचा दें। उत्तर की अपेक्षा हो तो जवाबी पत्र भेजें। निजी उद्देश्यों के लिए पत्र-व्यवहार करने वालों से भी जवाबी पत्र भेजने का अनुरोध है।

(5) अब तक घोषित शिविर 10 दिसम्बर 78 तक पूरी तरह भर चुके हैं। अगले घोषित सत्र इस प्रकार हैं।

1. ब्रह्मवर्चस सत्र चान्द्रायण व्रत सहित :-

14 दिसम्बर 78 (मार्गशीर्ष पूर्णिमा) से 12 जनवरी 79 (पौष पूर्णिमा) तक।

2. जीवन साधना सत्र :-

(1) 14 से 23 जनवरी 79 तक, (2) 25 जनवरी से 2 फरवरी तक (3) 3 फरवरी से 11 फरवरी तक। इच्छुक परिजन इन्हीं तिथियों के लिए आवेदन भेजें।

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बाढ़-विभीषिका और हमारे दायित्व

असामान्य संकट का सामना मूर्धन्य मनोबल से किया जाये।

इस वर्ष देश के पाँच प्रान्त-उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, आसाम और दिल्ली बुरी तरह बाढ़ की चपेट में आ गये। इस तरह के प्रकोप पहले भी आते रहे हैं किन्तु जैसी विनाशलीला, इस बार देखी गई वैसी प्रलयंकर स्थिति पहले कभी नहीं देखी गई। अपनी गायत्री तपोभूमि (मथुरा) भी इस आकस्मिक संकट और देव दुर्विपाक से अछूती नहीं रह सकी। अधिकारियों के अनुमान और बाढ़ की घोषित तिथि 8 और 9 सितम्बर थी किन्तु उस से पूर्व ही बाढ़ चढ़ दौड़ी। गायत्री तपोभूमि के आश्रमवासियों को बाढ़ के फैलने का पूर्वाभास था इसलिए निचली मंजिल से सामान हटाने का कार्य 5 सितम्बर को ही प्रारम्भ कर दिया गया था। 6 को जिस गति से जल स्तर बढ़ रहा था उससे भी अधिकारियों का पूर्वानुमान गलत नहीं लगता था, किन्तु यदि प्रकृति मनुष्य की सामर्थ्य में रही होती तो उसे सर्व समर्थ कौन मानता? 6 की रात को ही एकाएक बाढ़ का प्रकोप तेजी से बढ़ा और दूसरे दिन तक गायत्री तपोभूमि 10 फुट गहरे पानी में डूब गई।

इस बीच यज्ञाग्नि को सुरक्षित ऊपरी मंजिल में पहुँचा दिया गया। आफिस के रिकार्ड के अतिरिक्त तैयार साहित्य भी काफी मात्रा में ऊपरी मंजिल में पहुँचा दिया गया। कर्मचारियों को भी नीचे से हटाया गया। कई भाषाओं में पत्रिका प्रकाशन और उसकी संख्या बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण कागज का समुचित स्टॉक भरा जाना आवश्यक था। यह कागज नीचे की मंजिल में ही था, बाढ़ के प्रकोप के कारण विषैले जीव-जन्तुओं ने भी इन्हीं डेरों में शरण ले रखी थी इस सब के बावजूद छाती तक पानी में जितना सामान बचाया जा सकता था बचाया गया। पर जल स्तर के एकाएक 5 फुट बढ़ जाने के कारण प्रयास निरर्थक सिद्ध हुए बड़ी संख्या में कागज की रिमें थीं जिन्हें बचाया जाना पूरी तरह असंभव हो गया। प्रेस, और टाइप, चित्र पोस्टर, सीमेन्ट, लाइब्रेरी तथा बहुत बड़ी मात्रा में वह पुस्तकें और पत्रिकायें जिनके फर्में बाइंडिंग के लिए निचले खंडों में भरे हुए थे बाढ़ में न केवल डूब गये अपितु प्रखर जल धार में बह भी गये। बाढ़ इतनी द्रुत और भयंकर थी कि जो टाइप इतना वजनदार होता है कि केस एक आदमी से उठाये नहीं उठता वह भी नावों की तरह से तैर कर निकल पड़ा और बहकर न जाने कहाँ चला गया। यह क्षति लाखों तक पहुँच गई है।

बाढ़ उतर गई है। एक-एक वस्तु का ब्योरा तैयार किया जा रहा है। जो काम में लिया जा सकता है साफ किया जा रहा है। गायत्री तपोभूमि की आर्थिक स्थिति वहाँ पहुँच गई है जहाँ पच्चीस वर्ष पूर्व थी। यह हरिश्चन्द्र की सत्य, प्रह्लाद की भक्ति, दमयन्ती के शील, पाण्डवों के धैर्य और राम की मर्यादा की कठोर परीक्षा जैसी अवस्था थी, जिसका आश्रमवासियों ने पूरे धैर्य और साहस के साथ सामना किया।

परीक्षा का पूर्वार्द्ध समाप्त हुआ है। सामूहिक साझेदारी की परीक्षा अब प्रारम्भ हो रही है। जिसमें मिशन के हर परिजन को अपना कर्तृत्व निवाहना होगा। प्रकृति की यह दण्ड व्यवस्था अकारण नहीं होती यह सभी जानते हैं कि प्रतिष्ठा उन लोगों की होती है, जो परीक्षायें देते और उनमें उत्तीर्ण होते हैं। महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व ऐसे ही लोगों को सौंपे जाते हैं। दुर्बल मनोबल और कठिन चुनौतियों में असफल चाहे व्यक्ति हो,समाज हो अथवा राष्ट्र कभी आगे नहीं बढ़ पाते जबकि यहूदी जैसी जातियाँ और जापान जैसे संकल्पी राष्ट्र महायुद्धों की विभीषिकायें झेलकर भी अग्रणी पंक्तियों में जा खड़े होते हैं। प्राकृतिक विपत्ति से घबड़ाकर भाग खड़े होने वाले लोग तो कायर और प्रतिगामियों की पंक्ति में खड़े होकर अपना, समाज और राष्ट्र सभी का नाम कलंकित करते हैं।

प्रश्न यह नहीं है कि लोक-मंगल के कार्य में जुटे लोगों को भी ईश्वरीय दण्ड का सामना क्यों करना पड़ा? इतिहास साक्षी है कि कोई भी महान कार्य संकटों की चुनौती स्वीकार किये बिना नहीं पूरा हुआ। राम और कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों तक ने महा भयानक युद्ध लड़कर अपने मिशन पूरे किये हैं यदि इस तरह की चुनौतियाँ न आयें तो किसी की भी प्रामाणिकता सिद्ध न हो। प्रज्ञावतार के सम्मुख प्रस्तुत संकट भी उसी इतिहास की पुनरावृत्ति मात्र है उसे अपना कार्य सुनिश्चित सम्पन्न करना है, “अभ्युत्थानं धर्मस्य” का संकल्प पूर्ण होने तक युगान्तर सत्ता चुप नहीं बैठ सकती, “निश्चर हीन करो मही” का प्रण पूरा न होने तक राम विश्राम नहीं ले सकता-सो उसके सहायक रीछ बानरों की सेना को ही अवकाश कैसे दिया जा सकता है। “धर्मयुद्ध की तैयारी अब और भी उत्साहपूर्वक सम्पूर्ण मनोबल के साथ की जायेगी। संकट के कारण वह अधूरा थोड़े ही छोड़ दिया जायेगा।

इस समय गायत्री तपोभूमि का पहिया जाम हो गया है, कागज फिर से मंगाना पड़ेगा, टाइप भरना पड़ेगा, जो मशीनें खराब हो गई हैं ठीक करानी हैं, इमारत को काफी क्षति पहुँची है उसकी भी मरम्मत आवश्यक है। इस रुके हुए चक्के को चलाने के लिए प्रत्येक परिजन को अपनी प्रखरता प्रदर्शित करनी होगी। हम दूसरे बाढ़ पीड़ितों जैसे नहीं जिन्हें दान की अपेक्षा हो तो भी इस समय गायत्री तपोभूमि को उठकर खड़े होने के लिए अर्थ व्यवस्था की तुरन्त आवश्यकता है। यह सहायता इस तरह की जाये :-

(1) युग शक्ति गायत्री के सभी भाषाओं में अधिक से अधिक सदस्य बढ़ाये जायें और उनके चन्दे ड्राफ्ट या मनीआर्डर से तुरन्त भेज दिये जाया करें। सभी पत्रिकाओं का चन्दा 10) वार्षिक के हिसाब से ही लिया जाये। आठ रुपयों में पहले ही पत्रिकायें घाटे में थीं। अन्य भाषाओं की प्रकाशन व्यवस्था बाहर होने से असह्य घाटा पड़ रहा है। जिन लोगों ने आठ रुपये के हिसाब से चन्दे भेजे हैं कृपया वे इसे दिसम्बर 78 तक ही मानें सन् 79 का हिसाब सुविधानुसार समायोजित कर लें।

(2) जिनके पास भी पत्रिकाओं तथा साहित्य का उधार बाकी पड़ा है उनसे उधार राशि तुरन्त भिजवाने का अनुरोध है।

(3) इस वर्ष गायत्री महापुरश्चरणों की शृंखला सारे देश में चल रही है। परिजनों की माँग के अनुसार 1000 मन्त्र लेखन एक रुपया मूल्य वाली मन्त्र लेखन पुस्तकें बड़ी संख्या में छपा ली गई हैं जहाँ-जहाँ महापुरश्चरण प्रारम्भ हो चुके हैं वे मन्त्र लेखन पुस्तिकायें इकट्ठी मँगा लें।

(4) पंजीकृत साहित्य विक्रेताओं और जहाँ भी ज्ञान रथ चल रहे हैं यदि वे अपनी-अपनी आवश्यकता का साहित्य अभी मँगा लें तो पत्रिकाओं के लिये कागज की व्यवस्था करना सम्भव हो जायेगा।

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