समय का पालन एक महत्वपूर्ण आदत

November 1975

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समय का पालन एक बहुत बड़ा गुण है। नियत समय पर निर्धारित काम करने की आदत शरीर और मन का सन्तुलन बनाये रहती है और वे अपना काम ठीक तरह करते रहते हैं। इसके विपरीत यदि अस्त-व्यस्त जीवनचर्या रखी जाय, किसी काम का कोई निर्धारित समय न रहे तो इसका प्रभाव शरीर एवं मन की स्वस्थता एवं प्रगति पर बहुत बुरा पड़ता है।

प्राणी का अचेतन मन उसे नियत समय पर नियत काम करने की प्रेरणा देता है और उसके लिए आवश्यक सामर्थ्य भी विभिन्न अवयवों में उत्पन्न करता है। इस प्रकृति व्यवस्था का ठीक प्रकार उपयोग करके शरीर निर्वाह तथा लोक-व्यवहार में हम प्रकृति का अभीष्ट सहयोग प्राप्त कर सकते हैं। नियत समय पर निर्धारित काम करने की व्यवस्थित दिनचर्या अपनाने की आदत बनाकर हम समग्र स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं और हाथ में लिए हुए कामों को सहज ही सफल बना सकते हैं।

कीड़े-मकोड़े और पक्षियों में यह विशेषता पाई जाती है कि वे अपने भीतर की किसी अज्ञात घड़ी के मार्ग-दर्शन से अपनी गतिविधियाँ पूर्णतया व्यवस्थित रखते हैं। फलतः प्रकृति उनके नगण्य से शरीर और मन को अपना जीवनयापन बहुत ही सुविधापूर्वक करते रहने के साधन जुटाये रहती है। यदि ये प्राणी नियमितता की आदत छोड़ दे तो निश्चय ही उनका जीवनयापन नितान्त कठिन बन जायगा।

जीव-जन्तुओं की अपनी आदत के अनुसार विभिन्न समयों पर विभिन्न कार्य नियमित रूप से करते हुए देखा गया है। मुर्गा समय पर बाँग देता है, रात सियार नियत समय पर रोते हैं, पक्षी प्रातःकाल अपने निर्धारित क्रम से चहचहाते हैं, चमगादड़ रात को ही उड़ते हैं, उल्लू और बाज रात में ही अपने शिकार ढूंढ़ते हैं। प्राणियों की अनेकों महत्वपूर्ण आदतें नियत समय पर क्रियान्वित होती हैं।

इसका क्या कारण हो सकता है इस प्रश्न के उत्तर में पिछले दिनों यही कहा जाता रहा है कि यह प्रकृति के परिवर्तन का प्रभाव है। रात और दिन के बदलते हुए प्रभाव प्राणियों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं और उसकी उत्तेजना से वे नियत समय पर नियत कार्य करने को प्रेरित होते हैं।

यह पिछला समाधान अब अमान्य ठहरा दिया गया है क्योंकि सूर्य की गतिशीलता के कारण उत्पन्न होने वाले प्रभावों से पूरी तरह बचाकर रखने पर भी प्राणी नियत समय पर, नियत कार्य करने के लिए तत्पर रहते देखे जाते हैं। तिलचट्टों को एक कृत्रिम वातावरण में रख गया। जहाँ प्रकाश, अन्धकार, शान्ति, कोलाहल, सर्दी-गर्मी की दृष्टि से सदा एक जैसी स्थिति रहती थी। समय के अन्तर को पहचानने का कोई साधन उस वातावरण में नहीं था। तो भी तिलचट्टों ने नियत समय पर अपनी नियत हरकतें आरम्भ कर दीं।

ऐसे ही वातावरण में चींटियाँ, दीमक, मधुमक्खियाँ तथा दूसरे कीड़ों को रखा गया, पर वे ठीक समयानुसार ही अपने सोने, जागने और काम करने का प्रयत्न उसी समय करते रहे जिस तरह कि सामान्य वातावरण में किया करते थे।

यदि एक मक्खी प्रातः 8 बजे शक्कर चाटने के लिए कुछ समय जाने की अभ्यस्त कराई जाय तो बाद में भी वह ठीक उसी समय बिना मिनट सेकेंडों का अन्तर किये उसी जगह पहुँचती रहेगी।

पिछले पचास वर्षा से वैज्ञानिकों द्वारा इस बात की खोज हो रही है कि प्राणियों के भीतर वह कौन-सी घड़ी है जो उन्हें नियत समय पर नियत कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।

उस घड़ी के स्वरूप, कारण और स्थान का तो ठीक पता नहीं चल सका, पर इतना निश्चय अवश्य हो गया है कि प्राणियों की अन्तःचेतना में कोई ऐसी सम्वेदना शक्ति है जो प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी अनायास ही प्राप्त करती रहती है। स्थानीय आवरण डालने से भी उस सम्वेदना शक्ति पर पर्दा नहीं पड़ता। प्राणी समय सम्बन्धी ज्ञान के किसी भी भुलावे के भीतर झाँक कर वस्तुस्थिति की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। उनकी घड़ी नियत समय की जानकारी उन्हें यथावत देती रहती है।

इस घड़ी की दूसरी विशेषता यह है कि अभ्यस्त समय पर नियत कार्य करने की उत्तेजना देती है। इस घड़ी का निर्माण उसकी जन्मजात प्रकृति के सहारे होता है। अतः उन जीवों को इधर-उधर स्थानान्तरित करने पर बदला हुआ समय उन्हें प्रभावित नहीं करता।

प्राणियों की भीतरी घड़ी झुठलाने के लिए अनेक प्रकार के अभिनव प्रयोग किये गये। उन्हें बहुत दिन तक बेहोश रखा गया। शून्य तापमान में जमा दिया गया-एक्सरेज किरणों से मस्तिष्क को अस्त-व्यस्त बनाया गया। इतने पर भी जब वे प्राणी बहुत समय उपरान्त अपनी स्वाभाविक स्थिति में पहुँचे तो उन मध्यवर्ती परिवर्तनों को भुलाकर अपनी पुरानी आदत पर आ गये और उसी समय पर वही कार्य करने लगे जो उन्हें आरम्भ से ही अभ्यास में था।

कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय के जीव-शास्त्री डाक्टर हार्कर का अनुमान था कि यह घड़ी सम्भवतः हारमोन ग्रन्थियों से निकलने वाले स्रावों से प्रभावित होती है। अस्तु उन्होंने प्रयोगशाला प्राणियों की हारमोन ग्रन्थियों को अलग करके देखा कि इसका क्या प्रभाव पड़ता है? इन ग्रन्थियों के न रहने से प्राणियों के शरीरों के अन्य प्रकार के नुकसान तो हुए पर समय पालन सम्बन्धी व्यवस्था यथाक्रम चलती रही।

डाक्टर हार्कर अन्ततः इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि शरीर के अनेक शारीरिक, मानसिक अवयव मिलकर अनेक शारीरिक, मानसिक अवयव मिलकर अनेक आदतों का सृजन करते हैं उन्हीं आदतों में समय का ज्ञान और उस समय नियत कार्य करने का उत्साह भी सम्मिलित है। एक उंगली कट जाने पर भी शेष उंगलियाँ मिल-जुलकर हाथ से होने वाले कार्य पूरे करती रहती हैं, ठीक उसी प्रकार कोई एकाध अवयव अशक्त या पृथक हो जाने पर भी शेष अवयवों को मिली भगत से समय पर नियत कार्य होते रहने का क्रम चलता रहता है।

समुद्र तट पर पाये जाने वाले कुछ केकड़े अक्सर अपना रंग बदलते रहते हैं। दिन चढ़ने के साथ-साथ वे गहरे चाकलेटी होते जाते हैं किन्तु दिन ढलने के उपरान्त उनमें हलका पीलापन उभरता दिखाई पड़ता है। इसके अतिरिक्त ज्वार-भाटों में चन्द्रमा के प्रभाव से जो हर रोज 50 मिनट का अन्तर पड़ता जाता है वही अन्तर केकड़ों की त्वचा के रंग में उतार-चढ़ाव के रूप में परिलक्षित होता है। इन केकड़ों को समुद्र तट से हटाकर बहुत दूर पर्वतीय क्षेत्र में रखा गया तो भी उनके रंग परिवर्तन क्रम में तनिक-सा भी अन्तर नहीं दीख पड़ा।

चींटियों की प्रणय केलि नियत निर्धारित मुहूर्त पर होती है। वर्ष में एक दिन ही एक समय ही उनका नियत रहता है। ठीक उसी घड़ी मुहूर्त में वे प्रणय केलि के लिए आतुरता अनुभव करती है और नर-मादाओं की बरातें सज-धजकर इसी उन्मादी प्रयोजन में संलग्न दीखती है। इनका पंचाँग कौन बनाता है, नियत मुहूर्त पर नियत स्वर से नफीरी कौन बजाता है? यह कैसे होता है? यह तथ्य समझ में न आने पर भी उनका निर्धारित क्रिया-कलाप बिना मिनट सेकेंडों के अन्तर के यथावत् चलता रहता है। अंग्रेजी कैलेंडर और हिन्दुस्तानी पंचाँग अपने ग्रह गणित में भूल-चूक करते रहते हैं, पर चींटियों को पंचाँग एवं मुहूर्त इतना सही होता है कि उन्हीं को प्रामाणिक मानकर अब ग्रह-गणित में संशोधन करने की बात सोची जा रही है। कई जाति की मछलियों में भी यही विशेषता पाई जाती है, वे गर्भ धारण करने के लिए नियत समय का ही नहीं नियत स्थान का भी ध्यान रखती है।

मनुष्य यदि इन छोटे प्राणियों से सभ्य पालन की नियमितता सीख सके तो इसमें उसकी भलाई ही भलाई है।


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