विक्षुब्ध आत्मा और उसके उपद्रव

November 1975

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अफ्रीका के नाइजीरिया देश में एक समय अंग्रेजों का उपनिवेश था। अब यों वहाँ आजादी है पर प्रभुत्व वहाँ स्थायी रूप से बसे हुए गोरों का ही है।

उस क्षेत्र के एक अंग्रेज फ्रेंक हाइब्स ने नाइजीरिया में आँखों देखा प्रेत विवरण प्रकाशित कराया था। वह अफसर किसी काम से ‘इंसुइंगु’ गया। वहाँ एक पुराना टूटा फूटा डाक बंगला था। उसने उसी में ठहरने का निश्चय किया। उस क्षेत्र के रहने वाले इसुओरगु कबीले के आदिवासी उसे समझाते रहे कि इस डाक बंगले में प्रेत रहते हैं इसलिए वह वहाँ न रहे। उन्हीं के घरों में ठहर जाय।

अफसर उनकी अन्ध मान्यताओं पर हंसता रहा और कहता रहा “उनके गन्दे घरों की अपेक्षा प्रेत के साथ खुले डाक बंगले में रहना अच्छा है” मजदूरों ने उस खंडहर की सफाई कर दी खाने ठहरने के साधन जुटा दिये पर रात को वहाँ रहने के लिए कोई तैयार न हुआ। निदान उसे अकेले ही उसमें रहकर रात बितानी पड़ी।

रात को बारह बजे तक वह सोता रहा किन्तु अर्धरात्रि होते ही किसी ने उसकी मच्छरदानी खींची। उठकर देखा तो कोई नजर नहीं आया किन्तु बदबू इतनी फैल रही थी वहाँ ठहरना मुश्किल हो गया। इतने में एक तेज हवा के झोंके ने बंगले की खिड़कियां जोरों से खड़काना शुरू कर दी और मेज पर रखी चाय की प्लेटें जमीन पर पटक दी। साथ ही किन्हीं भारी पैरों की आवाज उसे इस तरह सुनाई पड़ने लगी मानो कोई बड़ी आकृति का प्राणी इधर टहल रहा हो भरी पिस्तौल हाथ में लेकर हाइब्स बाहर निकला तो देखा कि अंधेरे में कोई छाया जैसी आकृति बरामदे में टहल रही है। अफसर ने आवाज दी पर कोई उत्तर न मिला तो उसने दो गोलियाँ दाग दी। पर इसका कोई प्रभाव उस आकृति पर न पड़ा। आकृति समीप बढ़ती आई और उसकी शकल आसानी से दीख पड़ने लगी। भयंकर चेहरा नाक बैठी हुई होठ खुले हुए गंजा सिर, स्थिर पुतली गड्ढों और झुर्रियों से भरे गाल वह बड़ा भयानक लग रहा था। अफसर मूर्तिवत् सुन्न खड़ा रहा। वह सोच न सका कि यह कौन है और क्या कर रहा है। धीरे धीरे आकृति पीछे हटी और खम्भे पर चढ़ने लगी। अफसर ने उसे निशाना बनाकर दो गोलियाँ और चलाई पर वह लगी किसी को नहीं। छाया भी गायब हो गई। डरा हुआ हाइब्स बेतहाशा भागा और कुछ दूर तक चीख के साथ बेहोश हो गया। आदिवासी यह जानने के लिए इर्द गिर्द ही घूम रहे थे कि देखें क्या घटना घटित होती हैं वे लोग चीख सुनकर दौड़े आये और अफसर को उठाकर अपनी चौपाल पर ले गये। जहाँ उसे कई घण्टे होश आया।

दूसरे दिन अफसर ने आदिवासियों को बुलाकर उनके परिचित प्रेत की बाबत पूछताछ की इसुओरगु लोगों ने बताया कि जिस जगह डाक बंगला बना है पहले उस जगह एक टीला था जिस पर जूजू देवता की पूजा होती थी और जानवरों तथा मनुष्यों की बलि दी जाती थी। अंग्रेज जब आये तो उन्होंने उस स्थान की अनगढ़ मूर्तियों को उठवाकर एक ओर फिंकवा दिया नरबलि बन्द करादी और डाक बंगला बनवा दिया। इस पर उस क्षेत्र का देव पुरोहित बहुत बिगड़ा और अंग्रेजों के चले जाने पर गाँव वालों की इकट्ठा करके बोला डाक बंगले को जला दो और वहाँ फिर से देवता की पूजा आरम्भ करो। भयभीत ग्रामवासी इसके लिए तैयार नहीं हुए। निराश पुरोहित क्रोध में उन्मत्त स्थिति में पागलों की तरह बड़बड़ाता और मंत्र पड़ता हुआ उस डाक बंगले के चारों ओर चक्कर लगता रहा और अन्त में एक रस्सी से उसी के बरामदे में फाँसी लगाकर मर गया तब से अब तक उसी पुरोहित का प्रेत डाक बंगले में रहता है। कोई उधर जाने की हिम्मत नहीं करता। इससे पहले भी कोई अंग्रेज अफसर आया है और उसमें ठहरा है तो उसे प्रेत ने रहने नहीं दिया है।

उस बंगले में ठहरने वाले यह अनुभव करते रहे है कि विचित्र प्रकार की दुर्गन्ध उस बंगले के कमरों से आती है। उस भीषण उष्ण क्षेत्र में जहाँ रात को भी लोग हाँफते रहते हैं। इस बंगले में कंपाने वाली ठण्डक रहती है। बाहर हवा बिलकुल ही बन्द क्यों न हो किन्तु भीतर आँधी तूफान उठते रहते हैं।

फ्रेंक हाइब्स ने इन सब बातों की जानकारी विस्तारपूर्वक प्राप्त की और जब उसे डाक बंगले के भुतहे होने का विश्वास हो गया तो भविष्य में किसी अफसर पर संकट न आये यह ध्यान में रखते हुए उसमें सामने आग लगवादी और वह जलकर धराशायी हो गया। कितने आश्चर्य की बात है कि इस अग्निकाण्ड के साथ भविष्यवाणी भी सिद्ध हुई। पुरोहित जब आदिवासियों को डाक बंगला जलाने के लिए तैयार न कर सका तो इतना ही कहा अच्छा तुम मत जलाओ पर देखना एक दिन वह किसी न किसी के द्वारा जलकर ही नष्ट होगा। सचमुच उस डाक बंगले का अन्त वैसा ही हुआ।

भूत प्रेतों के अस्तित्व संबंधी प्रचलित कथा गाथाओं के संदर्भ में एक तथ्य सदा ही सामने आया है कि जिन व्यक्तियों को मरते समय अत्यधिक आवेश रहे है उन्होंने उसी मन स्थिति का परिचय अपने प्रेत कलेवर में दिया है। जैसे धन या मकान से अत्यधिक प्यार करने वाले मरते समय उन वस्तुओं से अत्यधिक मोह प्रकट करते हुए विलग हुए है तो उनका प्रेत उन्हीं स्थानों के इर्द गिर्द मंडराता रहता है। जमीन में गढ़े हुए धन की उन्होंने चौकीदारी की है और यदि किसी से उसे निकाला भोगा है तो उसको तरह तरह के त्रास दिये है। घृणा और रोष की स्थिति में मरने वाले अक्सर प्रतिपक्षी को कष्ट देते हैं। ऊपर की घटना वाला पुरोहित प्रेत टीला हटाने के कारण रुष्ट हुआ और उस आक्रोश में विक्षिप्त होकर आत्म हत्या कर बैठा। मरने के बाद भी वह रोष शान्त नहीं हुआ और उद्विग्न आत्मा उसी टीले की जगह बने डाक बंगले को अपनी प्रतिहिंसा का केन्द्र बनाये रहा। मिश्र के पिरामिडों में बलि दिये गये मनुष्यों के चीत्कार इतने उद्विग्न रहते हैं कि उन स्थानों को छेड़छाड़ करने वालों पर ही बरस पड़ते हैं और घातक हमले करते हैं। कब्रिस्तानों और मरघटों में इसी प्रकार के उपद्रव घटित होते रहते हैं।

आवश्यक नहीं कि आत्मा नया जन्म धारण करने तक ही प्रेत स्थिति में रहे। यह भी हो सकता है कि मूल जीवन अपना पुनर्जन्म ग्रहण कर ले और उसके उद्विग्न शरीर के निकले हुए प्राण परमाणु एक छाया पुरुष जैसी प्रतिकृति गढ़ ले और उच्छिष्ट चेतना अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाकर बैठ जाय और चिरकाल तक उसी प्रेत स्थिति में बनी रहे। तन्त्र साधना में उच्छ्रिष्ट भैरव छाया पुरुष आदि की साधना के विधान है यह दैत्य न तो देव होते हैं और न दानव। वे उसके शरीर के साथ जुड़े हुए तेजोवलय के आधार पर बनी हुई प्रतिमूर्ति होती है जो विविध प्रकार के क्रिया कलाप तो सम्पन्न नहीं कर सकती पर एक ही स्तर के कार्य ठीक तरह पूरे करती रहती। मरघटों में तान्त्रिक साधना करने का प्रयोजन ऐसे ही किसी चेतना उच्छिष्ट को वशवर्ती बना लेता होता है जो शरीर त्याग देने पर भी किसी विशेष कारण से उद्विग्न स्थिति में जीवन यापन करता है। प्रेत योनि विक्षोभ की स्थिति है। उसमें समूची आत्मा का अथवा उसके एक अंश की विक्षुब्ध स्थिति का परिचय मिलता है।

मरते समय तथा उसके उपरान्त मृत्यु स्थान पर धार्मिक वातावरण बनाने की उपयोगिता धर्मशास्त्रों में इसीलिए बताई गई है कि उससे दिवंगत आत्मा को यदि कोई विक्षोभ रहा हो तो उसका समाधान होने से सद्गति प्राप्त कर सकना सम्भव हो सके।


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