सुख दुःख हमारी कल्पनाओं पर निर्भर है।

November 1975

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सुख और दुःख की अनुभूतियों का विश्लेषण करते हुए डाक्टर जौइस ने लिखा है यह अनुभूतियाँ किसी व्यक्ति विशेष वस्तु विशेष या परिस्थिति विशेष के साथ बंधी हुई नहीं है। एक को जिसमें सुख मिलता है दूसरे को उसके रहते हुए भी दुख ग्रसित देखा गया है। आज जो वस्तुस्थिति बहुत अच्छी लगती है कल वही बुरी लग सकती है। मान्यताओं के बदलने के कुछ कारण भी हो सकते हैं पर तथ्य यही है कि वहाँ सुख या दुख को जितना आरोपित किया जाएगा वहाँ उसको उसी स्तर की अनुभूति होने लगी। अभीष्ट आकाँक्षाओं की पूर्ति में सुख मिलता है और वे आकाँक्षाएँ मनुष्य की स्वनिर्मित होती है। अस्तु सुख या दुख भी उसी का स्वनिर्मित है।

दुख और सुख की एक छोटी परिधि ही ऐसी है जो हमारी सीमा के बाहर है। इसमें शारीरिक पीड़ाएं प्रकृति के प्रकोप आक्रान्ताओं के उत्पीड़न प्रियजनों के बिछोह जीवनयापन के अनिवार्य साधनों का अभाव जैसे थोड़े कारण ही गिने जा सकते हैं। वे सदा हर किसी पर नहीं छाये रहते। कभी कभी किसी किसी को ही ऐसी आपत्तियां सहनी पड़ती है। साधारणतया इस प्रकार के प्रसंग कम ही आते हैं। सरल सुगम जीवन जी सकने योग्य स्थिति प्रायः बनी ही रहती है। फिर भी अधिकाँश जन्य नहीं भावना जन्य है। इसमें विचारों की अस्त व्यस्तता ही मुख्य कारण होती है।

अभिलाषाओं के प्रति इतना आतुर होना कि उनकी अति शीघ्र पूर्ति न होने पर उद्विग्नता अनुभव होने लगे चिन्तन की ही भूल है। इच्छित परिस्थितियों का मिलना इतना सुगम नहीं है कि चाहने भर से अनुकूलताएँ उत्पन्न होती चली जाय। अनेक कारणों के मिलने और अभीष्ट साधन जुटाने से ही सफलता मिलती है उसमें भी प्रयत्न साधनों और परिस्थितियों का अनुपात ही होता है। अभिलाषाएँ गढ़ते समय यह ध्यान नहीं रखा जाता है कि साधनों और आकाँक्षाओं में तालमेल है या नहीं। यदि है तो उसके लिए कितने श्रम साधन जुटाने पड़ेंगे कितने अवरोधों से संघर्ष करना होगा और कितनी प्रतीक्षा के उपरान्त चाहना ही पूर्ति होगी। इस हाथ चाहा और उस हाथ पाया की जादुई कल्पना करने वाले अफसर अपने को दुखी और दुर्भाग्य ग्रस्त कहते रहते हैं।

अमुक सफलताओं के साथ सुखानुभूति का सम्बन्ध जोड़ लेना आकाश कुसुम तोड़ने के समान है। छोटी से छोटी सफलता के लिए निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि बड़े से बड़े प्रयत्न एवं साधन होने पर भी वह उपलब्धि निश्चित रूप से मिल ही जाएगी। अनेक ऐसे छोटे बड़े कारण आते रहते हैं जो सारी योजना को ही उलट दे और सोची हुई व्यवस्था से सर्वथा विपरीत परिस्थितियाँ सामने लाकर खड़ी कर दे। मनुष्य अपने प्रयत्नों तक ही सीमित है परिस्थितियों पर उसका कोई काबू नहीं। सफलता में अकेला प्रयत्न ही काफी नहीं। परिस्थितियों का भी उसमें बड़ा भाग रहता है। किसान भरपूर परिश्रम करे तो भी पाला मार जाने टिड्डी आ जाने अतिवृष्टि होने जैसी दैवी प्रकोप फसल को नष्ट करके पुरुषार्थ का प्रतिफल नष्ट कर सकते हैं। ऐसी ही बाधाएँ या विपरीतताएँ कही भी कभी भी खड़ी हो सकती है और सुख के लिए जो तथ्य निश्चित किया था उसे मटियामेट कर सकती है।

सुख को अपने हाथ में रखने और उसे निरन्तर अनुभव करते रहने का सरल तरीका यह है कि अमुक सफलताओं की प्रतीक्षा किये बिना अपने प्रयत्न पुरुषार्थ की उत्कृष्टता को ही सुखानुभूति को केन्द्र मान लिया जाय। हमने अभीष्ट प्रयोजन के लिए सच्चे मन से समुचित प्रयत्न किया यह कर्मनिष्ठा अपने आप में एक गौरवास्पद उपलब्धि है। आलस्य और प्रमाद ही लज्जाजनक है। असावधानी और अस्त व्यस्तता ही निन्दनीय है यदि इन कलंकों से बचकर अपनी चेष्टा में कमी नहीं रखी गई है तो वह प्रयत्नशीलता ही इतनी आनन्ददायक हो सकती है कि उसके साथ गर्व और सन्तोष अनुभव किया जा सके।

जो परिस्थितियाँ उपलब्ध है उनमें बहुत कुछ ऐसी है जिसमें बहुत कुछ सुखानुभूति की जा सके। संसार में ऐसे मनुष्यों की कमी नहीं जो उन साधनों के लिए भी तरसते होंगे जो हमें मिले हुए है। यदि उन्हें हमारी स्थिति मिल गई होती तो कितने प्रसन्न होते। कभी इस दृष्टि से अपने साधनों पर विचार किया जाय तो प्रतीत होगा कि जो उपलब्ध है उस पर भी प्रसन्नता अनुभव की जा सकती है। यदि हम अपने से अधिक सुखी लोगों के साथ तुलना करके स्वयं को अभावग्रस्त स्थिति में न रखे और अभावग्रस्तों की तुलना में अपने का अधिक सुसम्पन्न समझे तो कोई कारण नहीं कि अपनी आज की परिस्थिति ही सन्तोषजनक एवं आनन्ददायक प्रतीत न होने लगे।

वस्तुओं की प्रचुरता एवं परिस्थितियों को ऊँचाई पर नहीं सुखानुभूति इस बात पर निर्भर है कि उनका उपयोग किस तरह किया जा सका। गहरी दिलचस्पी रखने पर छोटी या सस्ती वस्तुएँ भी बहुत सुखद बन जाती है। अपनी अशिक्षित या कुरूप पत्नी में जो थोड़े बहुत गुण है या विशेषताएँ है उन्हीं पर यदि ध्यान दिया जाय तो वह बहुत ही प्रिय लगने लगेगी। इसके विपरीत यदि सुयोग्य पत्नी के भी दोषों पर ध्यान दिया जाता रहेगा और उनके कारण अप्रसन्नता व्यक्त की जाती रहेगी ता वह सुख भी हाथ से निकल जायेगा जो अशिक्षित एवं कुरूप पत्नी के गुणों का चिन्तन करने वाले पति को मिलता है। पत्नी के रूप या गुण प्रसन्नता अप्रसन्नता के कारण समझे जाते हैं पर यह व्याख्या गलत है। वस्तुतः गुणों अथवा दोषों में से किस का किस मात्रा में चिन्तन किया जा रहा है उसी आधार पर वह प्रिय अप्रिय लगने लगेगी।

आमतौर से लोग अपने से विपरीत अथवा ऊँची स्थिति वालों को सुखी मानते हैं। अशिक्षित शिक्षितों को ग्रामीण शहरियें को किसान बाबुओं को निर्धन धनियों को सुखी मानते हैं। यदि उन लोगों से पूछा जाय ता बतायेंगे कि शिक्षित शहरी बाबू या धनी होने के कारण उन्हें जिन चिन्ताओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है उन्हें देखते हुए अशिक्षित ग्रामीण कृषक एवं निर्धन जीवन में कही अधिक सुविधा सरलता है। अविवाहित विवाहितों का सुखी मानते हैं और विवाहितों से पूछा जाय तो वे कहेंगे कि अविवाहित हम से कहीं अधिक सुखी सन्तुष्ट रहते होंगे। अपने अभावों की ही देखना और दूसरों के सुखी के साथ उनकी तुलना करना दुखी रहने का सस्ता नुस्खा है। इसके विपरीत अपने को जो उपलब्ध है उसका सदुपयोग करते रहा जाय और उसे आवश्यक सुख के लिए पर्याप्त माना जाय तो चेहरे पर सन्तोष भरी प्रसन्नता झलकती रहेगी।

आकाँक्षाओं का स्तर जिसने जितना बड़ा बना रखा होगा वह उतना ही दुखी रहेगा क्योंकि बड़ी सफलताएँ और बड़ी उपलब्धियाँ उतनी सरल नहीं है जितनी कि उन्हें गढ़ते समय सोचा गया था। व्यवधान एवं अवरोध तो छोटे से छोटे काम में लगते हैं फिर बड़े कामों का तो कहना ही क्या? प्रत्येक कठिनाई इच्छा पूर्ति में विलंब लगाती है और धूमिल करती है। इन चौराहों पर अति उत्सुक व्यक्ति उद्विग्न हो उठता है। देर लगने पर तो उसका जोश ठंडा होने लगता है और नशा उतरने पर शराबी की जो दुर्दशा होती है उसी तरह उसके भी हाथ पैर ठंडे होने लगते हैं।

अच्छा यह है कि छोटी सफलताओं के ऐसे लक्ष्य रखे जाय जो दो चार दिन में ही पूरे हो सकते हो सरल हो अपनी सामर्थ्य के अंतर्गत हो। ऐसे लक्ष्य निर्धारित करना जो जल्दी ही सरलतापूर्वक पूरे हो सकते हैं मनोबल बढ़ाने का ही अच्छा उपाय है। दूरगामी बहुत बड़ी योजनाएं बनाना और उनके लिए अधीर रहना अपने सिर पर अनावश्यक दुख लाद लेने के समान है। लम्बी और बड़ी योजनाएँ बनानी तो चाहिए पर उनके लिए आतुरता व्यक्त नहीं की जानी चाहिए। उस लम्बी मंजिल की छोटे छोटे टुकड़ों में बाँट लेना चाहिए और उन टुकड़ों में से एक एक पूरा करते चलना सफलता का चिह्न समझा जा सकता है। फिर यह जानकर चलना चाहिए कि यह अपने प्रयत्न की दिशा है देर सवेर में वहाँ तक पहुँच ही जायेंगे।

अधिकाँश दाम्पत्य जीवन इसलिए दुखी देखे गये है कि उन्होंने विवाह से पूर्व गृहस्थ बसने पर सम्भव होने वाले बहुत रंग बिरंगे चित्र मस्तिष्क में संजो रखे थे। कल्पना पर अंकुश नहीं वह किसी भी तरह गढ़ी जा सकती है पर दो मनुष्यों पर तालमेल किस हद तक किस प्रयोजन के लिए कितना बैठता है यह सब सुनिश्चित नहीं। समन्वय से जो भी स्वरूप बन जाय उसी से निर्वाह कर लेने की मन स्थिति वाले पति पत्नी अनेकों मतभेद रहने पर भी सन्तुष्ट रहते देखे है जबकि भावुक लोग राई रत्ती विषमता को ही पहाड़ मानकर झगड़ते उलझते हुए खीज में डूबे रहते हैं।

कुछ लोग संघर्ष की स्थिति आने पर बेतरह घबराते हैं जबकि कुछ लोग उलझने की मजेदारी का आनन्द लूटने के लिए कुछ न कुछ बखेड़े खड़े करते रहते हैं। इसके बिना उन्हें चैन ही नहीं पड़ता और नीरसता लगती है। संघर्ष घबराने वाला है या शूरता पर धार चढ़ाने वाला इसकी सीधी व्याख्या नहीं हो सकती। यह सब व्यक्तिगत मान्यताओं पर निर्भर है। कुछ लोग निठल्ले बैठे रहने में सुख अनुभव करे है जबकि दूसरों को एक क्षण भी बेकारी में गुजारना असह्य होता है। ठलुआ आदमी श्रमशील लोगों को दुर्भाग्यग्रस्त मानते हैं और श्रमनिष्ठ व्यक्ति इन आलसियों का दयनीय मानते हैं। दोनों में से कौन सही है यह पूछने पर दोनों ही अपनी अपनी मान्यता का समर्थन करेंगे

सुख दुख में अनिवार्य तथ्यों के कुछ थोड़े से तथ्यों को छोड़कर शेष सब कुछ काल्पनिक होता है। मनुष्य अपनी मान्यताओं और कल्पनाओं को विकृत बनाकर दुख दारिद्रय के दुर्भाग्य असन्तोष के विक्षोभ में जलता रहता है। यदि वह चाहे तो उस स्थिति से सहज की छुटकारा पा सकता है। भविष्य में संभावनाओं पर सुखानुभूति निर्भर रखने की अपेक्षा यह उपयुक्त है कि जो कुछ उपलब्ध है उसमें पूरी सरसता अनुभव करे और सदुपयोग करके अधिक से अधिक लाभान्वित होने का प्रयत्न करें।

अच्छे भविष्य की कल्पना करना-योजना बनाना और उसके लिए प्रयत्न करना उचित है और आवश्यक भी पर यह सब कुछ खेल विनोद की तरह होना चाहिए। भावी सफलताओं को इतना रंगीन आकर्षक एवं तुर्त फुर्त पूरी हो सकने वाली नहीं सोचा जाना चाहिए कि आतुरता में सामान्य जीवन की प्रसन्नता की भी बलि चढ़ा दी जाय।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118