नेत्रों की सुरक्षा इस प्रकार की जाय

November 1975

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नेत्रों को शरीर का सबसे उपयोगी अंग कह सकते हैं उनके बिना कितनी असुविधा होती है और प्रगति का पथ कितना अवरुद्ध रहता है इसे भुक्तभोगी ही जानते हैं।

नेत्रों की बनावट प्रकृति ने इतनी सावधानी से की है कि उनके जल्दी खराब होने की आशंका नहीं रहती। चोट गर्भकालीन दोष चेचक आदि की कोई दुर्घटना हो जाय तो बात दूसरी है अन्यथा यदि उनका दुरुपयोग न किया जाय तो वे आजीवन अपना काम ठीक तरह करते रह सकते हैं।

असावधानी और उपेक्षा बरतने से ही अक्सर समय से पूर्व आंखें खराब होती है। यदि उनके उपयोग में सतर्कता बरती जाय तो उन नेत्र रोगों से सहज ही बचा जा सकता है जो अधिकाँश लोगों को दृष्टि लाभ से वंचित करते चले आ रहे है।

धुँआ धूलि और धूप से आँखों को बचाया जाना चाहिए। बहुधा महिलाओं को भोजन बनाते समय गीली लकड़ियों अथवा पत्थर के कोयले के समीप बैठना पड़ता है। धुँआ किसी भी प्रकार का क्यों न हो आँखों को नुकसान पहुँचाये बिना न रहेगा। लकड़ी कोयला आदि खरीदने वालों को पूरी तरह परख कर ही यह वस्तुएँ लेनी चाहिए अन्यथा इस दिशा में बरती हुई थोड़ी सी भी भूल भोजन पकाने वाले की आँखों को लगातार खराब करती चली जायगी और उसे किसी दिन अंधे की स्थिति में पहुँचा देगी। चूल्हे या अंगीठी के समीप बैठने वालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि धुँआ आंखों को प्रभावित न करने पावे। घुटन और धुएँ से भरे वातावरण में रहना भी आँखों पर बुरा असर ही डालता है।

चलती गाड़ी रेल बस आदि में पढ़ना नहीं चाहिए। हिलती हुई पुस्तक के अक्षरों पर दृष्टि जमाने में आँखों पर दूना श्रम पड़ता है। लेटे लेटे या करवट से पढ़ने पर भी पुतली अपने स्वाभाविक स्थान से इधर उधर हटी रहती है अस्तु उस स्थिति में भी दबाव अधिक पड़ता है और आँखों को हानि होती है। हिलती हुई रोशनी में प्रकाश कम ज्यादा होता रहता है और उसका आँखों पर बुरा असर पड़ता है। अधिक बारीक अक्षरों की पुस्तक पढ़ना भी हानिकारक है। लगातार बिना पलक झपकाये टकटकी लगाकर देखना आंखों की ज्योति को घटाता है। सिनेमा आदि आकर्षक दृश्यों को लोग प्रायः इसी प्रकार देखते हैं और हानि उठाते हैं।

आँधी लू एवं तेज हवायें जब धूलि उड़ा रही हो तो नेत्रों की रक्षा की विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। हवा के रुख को बचाते हुए मुँह को थोड़ा टेढ़ा करके चलना चाहिए। दृष्टि नीचे कर लेनी चाहिए ताकि पलक झुके रहे और धूलि आँखों में न घुसे। ऐसी स्थिति में रंगीन चश्मा पहनना भी नेत्रों की धूलि में रक्षा करता है।

कड़ी धूप की चमक नेत्र पर बुरा असर डालती है। कड़ी धूप में शिर खुला नहीं रखना चाहिए। बालों का काला रंग धूप की गर्मी को विशेष रूप से खींचता है और शिर को गरम कर देता है। ऐसी दशा में शिर को ढक कर चलना ही उचित है। तेज धूप में रंगीन चश्मा पहना जा सकता है।

नेत्रों की ज्योति रक्षा के लिए आवश्यक है कि लगातार बहुत समय तक न पढ़ा जाय। बीच आँखों को विश्राम देने के लिए आंखें बन्द करके बैठ जाना चाहिए। रात को बहुत तेज रोशनी का उपयोग नहीं करना चाहिए और न इस तरह प्रकाश सीधा आँखों पर पड़े। सिनेमा देखते समय नीची सीट पर बैठकर और गरदन ऊपर उठाकर देखना आँखों के लिए हानिकारक है। ऐसे स्थान पर बैठना और इस तरह देखना चाहिए कि पर्दे पर पड़ने वाली रोशनी की चमक सीधी आँखों पर न पड़े।


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