सूक्ष्म में उतरें दिव्य उपलब्धियाँ पायें

October 1974

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पदार्थ की छोटी इकाई अणु है और समय की छोटी इकाई सेकेंड। पर अब सूक्ष्मता के क्षेत्र में गहराई तक उतरने पर इनके भी छोटे भाग, ढूँढ़ निकाले गये हैं। अणु एक सौरमण्डल है। उसमें कई प्रकार के परमाणु घूमते हैं। उन सबका सम्मिलित अस्तित्व एवं क्रिया−कलाप मिलकर एक अणु का सृजन करता है। ठीक इसी प्रकार अब सेकेंड को भी ‘मिली सेकेंड’ में विभाजित कर दिया गया है। यह विभाजन अन्तिम नहीं समझा जाना चाहिए। परमाणु और मिली सेकेंड के और भी अधिक सूक्ष्म भाग हो सकते हैं और उनका उपयोग वैज्ञानिक प्रगति में भारी योगदान दे सकता है।

मोटेतौर से ‘सेकेंड’ अत्यन्त छोटा समय विभाग है, उसे सामान्य समय गणना की सबसे छोटी इकाई माना जाता है, पर वैज्ञानिक क्षेत्र में यह समय बहुत बड़ा है। अणु भौतिकी से सम्बन्धित क्रिया −कलापों का गणित इतने मोटे आधार अपनाने से काम नहीं चल सकता। अस्तु इससे कहीं अधिक सूक्ष्म विभाजन की आवश्यकता पड़ी है। एक सेकेंड के हजारवें भाग को ‘मिली सेकेंड’ और दसलाखवें भाग को ‘माइक्रो सेकेंड’ नाम दिया गया है।

इतने छोटे समय विभाजन के बिना शक्ति क्षेत्र में चल रही गतिविधियों का हिसाब लगाना कठिन था। प्रकाश की गति एक सेकेंड में 1 लाख 86 हजार मील है उसको एक मील कितने समय में चलना होता है यह गणित माइक्रो सेकेंडों के आधार पर ही लगाया जा सकता है। सीसियम के अणु एक सेकेंड में 9, 19, 26, 31, 770 कम्पन उत्पन्न करते हैं यदि यह मालूम करना हो कि 1000 कम्पन कितने समय में उत्पन्न हुए तो माइक्रो सेकेंड माप के बिना कैसे काम चलेगा। अन्तरिक्षयानों के लिए सही हिसाब अत्यन्त आवश्यक है। इसमें तनिक भी अन्तर पड़ने से सारा कार्यक्रम ही गड़बड़ा जायगा। इसके लिए ऐसे शक्ति शाली कम्प्यूटरों का सहारा लेना पड़ता है जो माइक्रो सेकेंडों की नाप−तौल सही रीति से कर सके।

बहुत समय से समय का आधार पृथ्वी की चाल को माना जाता रहा है, पर अब उसका भी यह खोट पकड़ लिया गया है कि वह समीपवर्ती और दूरवर्ती ग्रहों के आकर्षण का दबाव मानकर कभी अपनी चाल धीमी कर देती है कभी तेज हो जाती है। हर सौ वर्ष में उसका दिन हर एक घटा सौ सेकेंड बढ़ जाता है। ऐसी दशा में समय जैसी बहुमूल्य वस्तु का सही अंकन इस अनिश्चित गति वाली धरती पर कैसे छोड़ा जाय। अब धरती को झूठी गवाही देने वाली बताकर अप्रामाणिक घोषित कर दिया गया है और अणु गति को सच्ची साक्षी कहा गया है। कैंब्रिज के एक वैज्ञानिक प्रो.जेराल्ड ने अणु घड़ी इस प्रकार के उपकरणों के आधार पर बनाई है जो सेकेंड के एक अरब वें भाग का भी लेखा−जोखा रख सके और जिसमें 3000 साल तक तनिक भी हेर−फेर उत्पन्न न हो।

यह संसार स्थूल रूप से दृश्यों और हलचलों का समूह मात्र है, पर यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो उसे शक्ति भंडार की ही संज्ञा दी जायगी। मनुष्य स्थूल दृष्टि से एक बोलता सोचता दुर्बलकाय पशु मात्र है जो पेट−प्रजनन के लिए अन्यान्य प्राणियों की तरह ही जीता−मरता रहता है। उसकी दिव्य सामर्थ्य सूक्ष्म चिंतन और दूरदर्शितापूर्ण कर्त्तव्यों के साथ जुड़ी हुई है। जिस प्रकार हम अपने काय−कलेवर को सँजोते हैं, उसी प्रकार यदि हम दिव्यसत्ता को समझने और उसको परिष्कृत विकसित बनाने में संलग्न हो सके तो उस सूक्ष्म प्रक्रिया का परिणाम ऐसा सुन्दर हो सकता है जिसका अनुभव कर जीवसत्ता का कण−कण आनन्द विभोर हो सके।


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