जिन वृक्षों की जड़ें जमीन में गहरी और लम्बी धँसी होती हैं वे आँधी तूफान और वर्षा के प्रकोप से भी स्थिर बने रहते हैं। किन्तु जिनकी जड़ें उथली, कमजोर या सड़−गल गई होंगी तो वे किसी भी छोटे प्रकृतिगत आघात से धराशायी हो सकते हैं।
आदमी के जड़ें उसके भीतर है—आदर्शों और विश्वासों में। चरित्रवान, साहसी और पुरुषार्थी को ही सच्चे अर्थों में मजबूत कह सकते हैं साथ ही साधन सम्पन्न भी। आदमी को बाहरी कठिनाइयाँ परास्त नहीं कर सकतीं। वह टूटता तो तब है जब भीतर से खोखला बन गया होता है।
—लोकमान्य तिलक