मानवी बुद्धि कौशल की जितनी प्रशंसा की जाय उतनी ही कम है। उसने इस शताब्दी में जो वैज्ञानिक सफलताएँ प्राप्त की हैं उससे अतीत का सारा प्रगति इतिहास पीछे छूट गया है। उपलब्धियों पर दृष्टिपात करते हैं तो प्रतीत होता है कि उपनिषदकारों का यह कथन सच ही है कि मनुष्य से बढ़कर और कुछ नहीं। वह सर्व शक्ति मान का पुत्र होने के कारण स्वयं भी शक्तियों के अजस्र स्रोत का अधिपति है।
पिछले दिनों अणु शक्ति करतल गत की गई और उसके ध्वंसात्मक एवं रचनात्मक स्वरूपों को समझा गया। अब उससे भी बड़ी शक्ति लेजर किरणों के हाथ लगी है। यों अभी वह शोध बाल्यकाल में से ही गुजर रही है, पर सम्भावना यही दिखती है कि जब प्रौढ़ावस्था तक उसकी जानकारी पहुँचेगी तो विश्व के मूर्धन्य शक्ति स्रोतों में उसी का नाम प्रथम पंक्ति में होगा।
परमाणु शक्ति की महत्ता बहुत पहले जानी जा चुकी है, पर उसका उपयोग बड़ी स्वल्प मात्रा में ही सम्भव हो सका है। कारण यह है कि परमाणु अपनी किरणें अस्त−व्यस्त ढंग से सभी दिशाओं में बखेरते रहते हैं। जब इस विकिरण को एक ही दिशा में केन्द्रित किया जाता है तो वह नियन्त्रित विकिरण प्रवाह ‘लेजर’ कहलाता है। लेजर एक निश्चित शब्द है उसका पूरा नाम है—’लाइट ऐप्लिफिकेशन वाइ स्टिम्युलेटेड एमिशन आफ रेडियेशन।’
अलादीन के जादुई चिराग की चर्चा कथा गाथा की किंवदंती रही है, पर आज लेजर का उपयोग ऐसा अद्भुत है जिसे सचमुच जादुई चिराग ही कह सकते हैं।
वोस्टन के निकट लेक्सिंगटन की वेधशाला में पिछले दिनों एक प्रयोग प्रो. लुई स्मलिन के तत्वावधान में सम्पन्न हुआ। लेजर यन्त्र का बटन दबाया गया और लाल रंग की प्रकाश किरण पतले तीर की तरह छूटीं और अन्तरिक्ष को चीरती हुई 1.3 सेकेंड में चन्द्रमा से जा टकराई। वहाँ उसने अल्वाटेनियस ज्वालामुखी के केडर के इर्द−गिर्द दो मील क्षेत्र में जगमगाता हुआ प्रकाश उत्पन्न किया। तदुपरान्त वह 2॥ लाख मील की यात्रा करके शब्दबेधी बाण की तरह अपने उद्गम स्थान पर लौट आई। इस प्रकार धरती पर बैठे किसी अन्य ग्रह को प्रकाशित करने का पहला प्रयोग सफल हुआ। अब इन किरणों के विविध−विधि उपयोग ढूँढ़ निकालने के प्रयत्न में 400 प्रयोगशालाओं में 2000 वैज्ञानिक अकेले अमेरिका में लगे हुए हैं। अमेरिका का प्रधान प्रतिद्वंद्वी रूस, भी इस दिशा में चुप नहीं बैठा है, उसने भी इस महाशक्ति को हस्तगत करने के लिए अपने वैज्ञानिक साधनों को बड़ी मात्रा में झोंक दिया है।
युद्ध प्रयोजनों में अगली बार ‘लेजर’ किरणों की भूमिका सर्वोपरि रहेगी, ऐसा समझा जाता है। जनरल कर्टिस ई.लायो का विश्वास है अन्तर्महाद्वीपीय प्रक्षेपणास्त्रों के नष्ट करने में लेजर किरणों द्वारा आत्म−रक्षा का एक बहुत बड़ा प्रयोजन पूरा किया जा सकेगा। अगले दिनों विमानभेदी तोपें पिछले युग की स्मृतियाँ भर रह जायेंगी। हलकी सी लेजर बन्दूक ही अपने अचूक निशाने से किसी भी विमान को क्षण भर में धराशायी बना दिया करेगी। जिन देशों के पास यह बन्दूकें होंगी उनके लिए हवाई हमले से डरने का कोई कारण न रहेगा। फ्रक फोर्ड शस्त्रागार में जो लेजर बन्दूक बनी है उससे एक सेकेंड में धरती के इस छोर पर बैठकर उस छोर का सही निशान साध सकना सम्भव हो जायगा।
मृत्यु किरण की चर्चा पिछले बहुत वर्षों से विज्ञान जगत में चल रही थी। उसके झंझट भरे प्रयोगों की अब आवश्यकता न रहेगी। लेजर किरणों का ही दूसरा नाम मृत्यु किरण होगा। इस आधार पर कितने ही बड़े क्षेत्र को बात की बात में भस्म करके रख दिया जायगा; सैनिकों और नागरिकों की तो बात ही क्या घास पात तक जल−भुनकर खाक हो जायेंगे। अणु युद्ध से लेजर युद्ध सरल और सस्ता पड़ेगा। उसमें विस्फोट जल विकिरण से होने वाली हानि की भी आशंका कम ही है। अणुबम से उसकी लागत तो कम है ही।
लेजर किरणों का रचनात्मक उपयोग भी है। उन्हें चिकित्सा तथा दूसरे उपयोगी कार्यों में भी प्रयुक्त किया जा सकेगा। न्यूयार्क के अस्पताल में एक रोगी की आँख की पुतली पर उगा हुआ ट्यूमर लेजर किरण द्वारा एक सेकेंड के हजारवें भाग में आपरेशन करके अलग कर दिया गया। केन्सर सरीखे जो दुष्ट रोग दवादारू तथा साधारण उपचार के काबू में नहीं आते लेजर किरणों द्वारा आसानी से ठिकाने लगाये जा सकेंगे।
अन्तरिक्षीय उड्डयन क्षेत्र में लेजर विज्ञान क्रान्तिकारी परिवर्तन करने जा रहा है। राकेटों से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से ऊँचा उछालने में शक्तिशाली ईधन की और उसे रखने के स्थान की जरूरत पड़ती है, इस प्रयोजन की पूर्ति में ही राकेट संरचना का बहुत बड़ा भाग लगा और बना होता है। लेजर किरणें आसानी से राकेट को इच्छित ऊंचाई पर उछाल दिया करेंगी। तब हलके और सस्ते राकेटों से काम चल जायगा। ईधन की आवश्यकता न रहेगी तो उस वाहन में आवश्यक शोध यन्त्रों अथवा प्रयोग यन्त्रों के फिट करने से ही काम चल जायगा। इन अंतरिक्षयानों को बिजली धरती से ही पहुँचाई जा सकेगी। तब उनकी यात्रा न केवल सस्ती ही हो जायगी वरन् सुरक्षित, सरल और सुखद भी रहेगी। इस विज्ञान का अधिक विकास होने पर वायुयान—खचड़ा गाड़ी जैसे पुरानखण्डी प्रतीत होंगे। इतना तेल, पैट्रोल, इतने विद्युत उपकरण—इतनी कम चाल के इन हवाई जहाजों को लेजर वायुयानों की तुलना में कोई भी पसन्द न करेगा।
यदि तीसरा महायुद्ध छिड़ा तो परमाणु अस्त्र तो केवल धमकी भर का काम करेंगे। असली मार लेजर की होगी। वे मृत्यु किरण बनकर जिस क्षेत्र को चाहेंगी देखते−देखते भस्म करके रख देंगी। अणुबम विस्फोट से जो रेडियो धर्मी धूलि उड़ने का संकट रहता है वह भी न होगा और धातकता की दृष्टि से वह उससे कहीं आगे भी रहेंगी।
मानवी बुद्धि कौशल और शोध परक तन्मय एकाग्रता का अद्भुत प्रतिफल है ‘लेजर’। इस उपलब्धि के लिए उसे बधाई ही दी जा सकती है। किन्तु साथ ही एक असमंजस भी सामने आ खड़ा होता है कि जिस तरह मानवी प्रवृत्ति आदर्शों के क्षेत्र में दिन−दिन पतनोन्मुख होती चली जा रही है उसे देखते हुए किसी भी वस्तु परिस्थिति, उपलब्धि एवं सफलता का सदुपयोग संदिग्ध हो गया है। जो कुछ हाथ लगता है उसी का दुरुपयोग करने में आज की दुर्बुद्धि जुट पड़ती है। चेतना के क्षेत्र में जिस प्रकार वैज्ञानिक आविष्कारों के अभिवर्धन में प्रगति हुई है उसी प्रकार क्या पिछड़े हुए और क्या मूर्धन्य सभी में दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों का गगनचुम्बी उत्पादन, विकास, विस्तार हुआ है।
दुर्बुद्धि के रहते सम्पदाओं का बढ़ते जाना खतरे से खाली नहीं है। दोनों का संयोग बारूद और चिनगारी के समन्वय जैसा उपद्रव खड़ा कर सकता है। वर्तमान समय में बारूद भी बढ़ रही है और चिनगारियाँ भी अन्धड़ के साथ उड़ रही हैं, आशंका यही रहती है कि आश्चर्यचकित करने वाली वैज्ञानिक उपलब्धियाँ चिरसंचित मानव सभ्यता का अन्त न करदें। मानवी अस्तित्व को ही इस धरती पर से समाप्त न करदें।
इस असमंजस का हल दो ही प्रकार हो सकता है कि या तो दुर्बुद्धि रहने तक विघातक साधनों पर पूर्णतया रोक लगादी जाय या फिर दुर्बुद्धि पर तीखे प्रहार करके उसे सद्बुद्धि में परिणत किया जाय ताकि उपलब्धियों का सदुपयोग हो सके और उन्हें सुख−शान्ति के लिए प्रयुक्त किया जा सके। दूसरा मार्ग ही श्रेयस्कर है।