कालिमा (kahani)

October 1974

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भगवन्! आपने इस संसार में लाल, पीले, हरे, सफेद और नीले जैसे सुन्दर और आकर्षक रंग बनाये हैं। तब मैंने ही पूर्व जन्म में कौन−सा पाप किया था जिसके कारण श्यामवर्ण मेरे ही हिस्से में आया। मेरी कालिमा किसी को पसन्द नहीं। हर व्यक्ति मेरी कुरूपता को देखकर नाक, भौं सिकोड़ता है। यह आपका सरासर अन्याय है। काले रंग ने उलाहने के स्वर में विधाता से कहा।

विधाता ने मुस्कराते हुए कहा−’वत्स! तुम कितने भोले हो। तुम्हें यह भी मालूम नहीं कि मैं इस संसार में किसी वस्तु को कोई रंग प्रदान नहीं करता। सारे रंग सूर्य की किरणों में समाये हुए हैं। जिस वस्तु में उनका रंग खींचकर अपने में पचालेने और फिर उसको विकीर्ण कर देने की जैसी क्षमता है, वैसा ही रंग उसे प्राप्त हो जाता है। तू किसी वस्तु को लेकर देना नहीं जानता, सब रंगों को अपने भीतर भरता भर है निकालने का नाम नहीं लेता। इस दशा में कालिमा तो तेरे पल्ले बँधेगी ही। मुझे दोषी ठहराने से क्या लाभ?


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