मानवी बुद्धि और श्रमशीलता एक ऐसी दुधारी तलवार है जिसका उपयोग विनाश के लिए भी हो सकता है और विकास के लिए भी। उलझा हुआ मस्तिष्क विपत्ति बन सकता है और परिष्कृत विचारधारा स्वर्गीय वातावरण का सृजन कर सकती है। वैज्ञानिक अन्वेषणों में लगे हुए प्रयत्नों को ही लें एक ओर मारक गैसें, विषाक्त रसायनें और अणु आयुधों के निर्माण से मानवी अस्तित्व के लिए संकट उत्पन्न किया जा सकता है तो दूसरी ओर कृत्रिम वर्षा कराने जैसे प्रयोगों में मानवी समृद्धि के बीज भी मौजूद हैं।