दार्शनिक चुआँगन्जु चीन में उस समय के प्रख्यात दार्शनिक थे। उनकी विद्या और विशेषताओं से प्रभावित होकर चीन सम्राट ने उन्हें अपने राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
सन्देश वाहक नियुक्ति पत्र लेकर चुआँगन्जु के पास पहुँचा उस समय वे नदी के तट पर बैठे जल में क्रीड़ा कल्लोल मछलियों को देखने का आनन्द ले रहे थे।
पत्र को उन्होंने ध्यान पूर्वक पढ़ा और पास पड़े पत्थर के नीचे दबा कर फिर उस मत्स्य विनोद को देखने में तल्लीन हो गये।
सन्देश वाहक को खड़े−खड़े देर हो गई। उसने उत्तर के लिए पूछा ताकि वह वापिस जाकर सम्राट को सूचना दे सके।
चुआँगन्जु मछलियों को ही देखते रहे और उन्होंने उलट कर सन्देश वाहक से पूछा—मैंने सुना है सम्राट के संग्रहालय में किसी बहुत बड़े और बड़े पुराने कछुए की खाल सजी हुई रखी है। जरा तुम्हीं बताना यदि वह कछुआ जीवित होता तो वो इस नदी के जल में विहार करना पसंद करता अथवा सम्राट के संग्रहालय की शोभा बढ़ाना?
चुआँगन्जु ने प्रधानमन्त्री बनने की अपेक्षा दार्शनिक रहना पसन्द किया और वहीं वे रहे भी।