वस्तुओं में नहीं बुद्धि में दोष ढूंढ़ें

October 1974

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संसार की न तो कोई वस्तु बुरी है और न अच्छी। अच्छाई बुराई उसके उपयोग की क्षमता एवं दिशा में है। विष भी उपयुक्त प्रयोजनों के लिए काम में लाने पर अमृत जैसे उपयोगी सिद्ध होते हैं और अमृत भरा वजनदार घड़ा किसी के सिर पर पटक दिया जाया तो वह उसकी मृत्यु का कारण बन सकता है।

पदार्थों का विश्लेषण, विवेचन तो करना चाहिए पर उन्हें भला या बुरा नहीं मान लेना चाहिए। धन, रूप, बल, बुद्धि, कौशल, विद्या आदि विभूतियाँ यों सौभाग्य सूचक मानी जाती है, पर यदि इन्हें अवाँछनीय प्रयोजनों के लिए काम में लाया जाय तो समाज के लिए ही नहीं स्वयं प्रयोक्ता के लिए भी अभिशाप सिद्ध होती है। जहाँ इनका सदुपयोग वरदान जैसे परिणाम उत्पन्न करता है वहाँ दुरुपयोग से भयंकर संकट भी उत्पन्न होता है।

उदाहरण के लिए हाइड्रोजन गैस को ही लिया जाय। यह एक हलकी−सी गैस है। यदि उसकी शक्ति का सदुपयोग करने पर वह विनाशकारी परिणाम उपस्थित कर सकती है।

सोलहवीं सदी में विज्ञानी पैरासेलसस ने धातु को तेजाब में घोलने पर निकलने वाली ज्वलनशील गैस का परिचय प्राप्त कर लिया था, पर तब किसी को यह पता नहीं था कि वह हाइड्रोजन गैस भविष्य में विज्ञान जगत में मूर्धन्य भूमिका का सम्पादन करेगी।

हवा में उड़ने वाले बाल−बच्चों के गुब्बारे हाइड्रोजन गैस की शक्ति से ही ऊपर उठते और उड़ते हैं। सन् 1783 में एस. पी. चार्ल्स ने मानव वाहन बड़ा गुब्बारा बनाया था। उसके बाद उड्डयन क्षेत्र में प्रगति होती ही चली गई। गुब्बारे अब भी वायुमण्डल की खोज खबर लेने के लिए उड़ाये जाते हैं। उनमें वायुदाब मापी ‘बैरोमीटर’ तापमापी—थर्मामीटर तथा रेडियो सान्डे जैसे यन्त्र रखे रहते हैं। जिनकी सूचना द्वारा धरती वालों को वायुमण्डल की स्थिति का पता लगता है। यह गुब्बारे हाइड्रोजन गैस की शक्ति से ही उड़ते हैं।

युद्ध प्रयोजन में काम आने वाले विस्फोटक टी. एन. टी. डाइनामाइट बनाने से लेकर उर्वरक खाद में प्रयुक्त होने वाले अमोनियम फास्फेट तथा अमोनियम सल्फेट जैसे पदार्थ इसी गैस के आधार पर बनते हैं। दवाएँ बनाने में अमोनियम कार्बोनेट, बैटरियाँ बनाने में अमोनियम क्लोराइड, बर्फ जमाने में अमोनिया गैस का उपयोग होता है यह सब हाइड्रोजन के ही बाल−बच्चे हैं। अणुबम से हजारों गुनी अधिक शक्ति वाला हाइड्रोजन बम इसी गैस के दो परमाणुओं के नाभिकों को मिलाकर बनाया जाता है।

हलकी हाइड्रोजन के ऊपर अणुओं का अपेक्षाकृत कम भार रहता है इसलिए वह स्वयं ऊँची उठती है और अपनी शक्ति से दूसरों को ऊपर उठाती है। यही मानवों में होती है वे व्यक्ति भौतिक महत्वाकाँक्षाओं के वजन से अपने को भारी नहीं बनाते। सन्तोष और शान्ति का सादा अपरिग्रही जीवन जीते हैं और अपनी क्षमताओं को उन कार्यों में लगाते हैं जिनसे समस्त संसार का भला हो सके। हाइड्रोजन की उपयोगिता उसके हलकेपन के साथ जुड़ी हुई है। अहंकार, परिग्रह, दंभ और वासना−तृष्णा की ललक का अनावश्यक भार यदि हमारे ऊपर लदा हुआ नहीं हो तो अधिकाधिक ऊँचाई के शिखर तक चढ़ सकना सम्भव हो सकता है।

सबसे बढ़ी बात उपयोग करने वाली प्रवृत्ति एवं क्षमता की है यदि इस गैस को रचनात्मक काम में लगाया जाता रहे तो उसके सहारे मनुष्य को अनेकानेक सुविधाएँ बढ़ाने का अवसर मिलता रह सकता है किन्तु यदि उसे विस्फोटक के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा तो उसकी ध्वंसक शक्ति भी इतनी प्रचण्ड है कि देखते−देखते व्यापक दावानल के रूप में परिणत हो सकती है और प्रयोक्ता के लिए तथा समीपवर्ती क्षेत्र के लिए घातक परिणाम उत्पन्न कर सकती है।


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