जड़ें कटती रही तो हम बढ़ न सकेंगे

October 1974

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जापान में बौने दरख्तों से अपने घर−आँगन सजाने का रिवाज है। देवदारु के पेड़ जो जंगलों में आमतौर से बीस−तीस फुट तक ऊँचे जाते हैं इन घरेलू बगीचों में तीन−चार फुट तक ऊँचे नहीं आते। भले ही उनकी उम्र दस−बीस साल क्यों न हो जाय।

एक जगह उसी जाति के पेड़ों का इतना ऊँचा होना और दूसरी जगह उनका इतना बौना रह जाना, देखने में सचमुच अचम्भे जैसा लगता है और तुलना करने पर यह भारी बड़ा रहस्यमय−सा प्रतीत होता है।

कारण ढूँढ़ने पर वस्तुस्थिति समझ में आ जाती है। माली लोग उन पौधों की जड़ें नहीं बढ़ने देते। उन्हें बार−बार काटते−छाँटते रहते हैं। जड़ें बढ़ेंगी नहीं,मोटी मजबूत न होंगी और जमीन में गहरी न घुसेंगी तो पौधे को खुराक कम मिलेगी और उसे मोटा मजबूत एवं ऊंचा बनने का अवसर ही न मिलेगा। बौनी नस्ल के देवदारु वृक्ष दुनिया में कहीं भी नहीं हैं। बगीचे वाले अपनी कुशलता के सहारे उन्हें छोटी जाति का बने रहने के लिए विवश करते रहते हैं।

मनुष्यों में बहुत से उन्नतिशील होते हैं वे कठोर परिश्रम—प्रखर मनोबल और अनवरत अध्यवसाय के बलबूते क्रमशः आगे बढ़ते जाते हैं। कठिनाइयों को पार करते हैं और साधन जुटाते हैं। आज की साधनहीन परिस्थिति कल विपुल साधन सम्पन्न बन सकती है यदि उसके लिए उपयुक्त मनःस्थिति सँजोई जा सके और समुचित गतिविधि अपनाई जा सके। विविध−विधि सफलताओं के वरदान किसी को छप्पर फाड़कर कदाचित ही मिलते हैं। आमतौर से उन्हें प्रचण्ड पुरुषार्थ के मूल्य पर ही खरीदा जाता है।

चिरस्थायी प्रगति का मूल कारण अन्तर के सद्गुणों की विशेषताओं में सन्निहित रहता है। मनुष्य भीतर से बढ़ता है। बाहर जो उसका विस्तार वैभव दिखाई पड़ता है उसके पीछे उसकी अदम्य महत्वाकाँक्षा काम करती है। प्रगतिशील मनुष्यों का पहला प्रयास यह होता है कि अपने विचार और स्वभाव का स्तर परिष्कृत करें। अपने अस्त−व्यस्त व्यक्तित्व को सुसंयत बना लेने का प्रयास यों सामान्यतः तुच्छ एवं महत्वहीन प्रतीत होता है—उसका स्वरूप या परिणाम तत्काल सामने नहीं आता फिर भी यह सुनिश्चित है कि उत्कर्ष के समस्त आधार इसी पृष्ठभूमि पर बनते हैं।

आलस्य और प्रमाद को शत्रु मानते हुए सदा श्रमशील रहना—व्यस्त क्रियाकलाप अपनाना, समय की बर्बादी तनिक भी न होने देना और पूरे मनोयोग के साथ सामने प्रस्तुत कार्य में अपने को तन्मय कर देना ऐसा गुण है जिससे सफलताएँ निकटतम घिसटती चली आती हैं। जिसने निर्धारित क्रिया−कलाप को पूरी दिलचस्पी और प्रसन्नता के साथ करने का रसास्वादन सीख लिया उसकी सोई हुई अगणित शक्तियाँ जगेंगी और अनुकूलताओं को खींच−खींचकर सामने खड़ा कर देंगी। जिसे उज्ज्वल भविष्य का विश्वास है—जो अगले दिनों अधिक अच्छी परिस्थिति आने की आशा सँजोये रह सकता है—जो कठिनाइयों से जूझने और विपन्नताओं के ढेर में से संपन्नता ढूँढ़ निकालने का साहस बनाये रहता है उसके लिए न तो कुछ असम्भव है और न असाध्य। आज नहीं तो कल सफलता की विजय श्री को वह वरण करेगा ही।

हम अपनी जड़ें न कटने दें। भीतरी विशेषताओं और विभूतियों को घटने न दें तो देवदारु के सुविकसित वृक्षों की तरह गगनचुम्बी प्रगति करेंगे किन्तु यदि जड़ें कटती रहीं तो फिर जापानी बगीचों में व्यंग उपहास और कौतुक की तरह उगे हुए बौने वृक्षों की तरह हमें गया−गुजरा जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ेगा।


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