मानव द्वारा इच्छानुसार वर्षा कराने का प्रथम सफल प्रयोग अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक कारपोरेशन द्वारा किया गया। उसने हवाई जहाज द्वारा सिलवर आयोडाइड का चूर्ण छिड़का और कृत्रिम वर्षा कराने में सफलता मिल गई। वर्षा का सिद्धान्त यह है कि जब वायुमण्डल में सूक्ष्म कणों के चारों ओर नमी संचित और एकत्रित हो जाती है तो वर्षा होने लगती है। सिलवर आयोडाइड का छिड़काव इसी उद्देश्य की पूर्ति करता है।
उपरोक्त प्रयोग के बाद यह परीक्षण संसार के अन्य अनेक भागों में भी हुए हैं। स्प्रे गनों की सहायता से सिलवर आयोडाइड के अतिरिक्त सूखी बर्फ, ब्राह्य आदि रसायन मिलाकर और भी अधिक सफलता पाई गई। अब अमेरिका में 10 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया में 15 प्रतिशत, इसराइल में 20 प्रतिशत वर्षा इसी आधार पर कराई जाती है। स्विट्जरलैंड में तो यह प्रयोग और भी अधिक परिणाम में होता है। रूस ने इन प्रयोगों द्वारा अपने कृषि उत्पादन को बहुत आगे बढ़ा लिया है।
कृत्रिम वर्षा का प्रथम प्रयोग मैलवोर्न नामक व्यक्ति ने किया। उसने इसी प्रयोजन के लिए एक प्रयोगशाला बनाई। कई पहियेदार हौज, बिजली की बैटरियाँ, रासायनिक पदार्थों की शीशियाँ, धुँआ निकलने की चिमनियाँ शीशे से बन्द चार खिड़कियां इन थोड़े से साधनों को लेकर वह अपने प्रयोग करता रहा। सफलता के निकट पहुँचने पर उसने आगे का कार्य किन्हीं मजबूत हाथों में सौंपने का निश्चय किया और अपना नुस्खा कीमत लेकर बेच दिया।
यह प्रयत्न आगे बढ़ा। कृत्रिम वर्षा कराने वाली कई कम्पनियाँ बनीं। ज्वैत्स और हैटफील्ड नामक व्यक्तियों ने इस दिशा में भारी प्रयत्न किये।
प्रश्न इतना भर है कि मानवी बुद्धि कौशल को—साधन सम्पन्नता को—किस दिशा में—किस प्रयोजन के लिए खर्च किया जाय? यदि इस प्रश्न का यही हल निकाला जा सके तो यह संसार विपत्ति की विभीषिकाओं में से निकलकर सुख−शान्ति की असीम सम्भावनाओं से लाभान्वित हो सकता है।