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October 1974

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यदि तेरा कोई साथ न दे तो भी अपने अभीष्ट लक्ष्य की ओर अकेला बढ़ चल। जीवन का संग्राम अकेले—निहत्थे, निःशस्त्र और अँधेरे में भी लड़ा जा सकता है। अपनी पसलियाँ जलाकर जिसे प्रकाश उत्पन्न करना आता है वह न कभी झुकता है और न कभी रुकता है।

—रवीन्द्रनाथ टैगोर


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