व्यवस्था और नियम समाज की रचना के लिये होते हैं। महत्व नियम और व्यवस्था का नहीं, अपितु समाज के संगठन और जीवन को है।
यदि समाज के जीवन के लिये मर्यादा स्थापित करने की आवश्यकता हो तो मर्यादा-पुरुषोत्तम श्रीराम के समान मर्यादायें बाँधी जाती हैं और यदि मर्यादा-उल्लंघन की आवश्यकता हो तो योगेश्वर कृष्ण की भाँति मर्यादा तोड़ी भी जाती है।
-दीन दयाल उपाध्याय