एक सज्जन सेठ जमुना लाल बजाज के घोर विरोधी थे और बात-बात में उनकी कटु निन्दा किया करते थे।
एक दिन वे उदास ओर खिन्न बैठे हुए थे। जमनालाल उधर से निकले, गाड़ी रोककर कुशल समाचार पूछा और उदासी का कारण भी।
उनने अपने मन की बात कह दी। जमनालाल की निन्दा, आलोचना में एक पुस्तक उनने लिखी थी। छपाने में 500) लगते थे। उतना प्रबन्ध न हो पाने से वे दुःखी थे।
कारण जानकर जमनालाल जी ने जेब से निकाल कर उनके हाथ में 500) थमा दिये और कहा-इतनी छोटी बात के लिए आपको इतना खिन्न नहीं होना चाहिए?
आलोचक महोदय पानी-पानी हो गये।