एक सन्त महिला, नाम था राविया और काम था ईश्वर भक्ति। भ्रमण करते हुए कितने ही सन्त, सत्संग प्राप्ति की इच्छा से उसके पास आकर ठहरा करते थे। एक साधु ने राविया के धर्म ग्रन्थ को उठाया और पढ़ने लगा। उसमें एक पंक्ति कटी हुई थी। उसने पाठ वहीं छोड़ दिया और कहा ‘तुम्हारा यह धर्म ग्रन्थ तो अपवित्र हो गया किसी ने इसे नष्ट कर दिया है अब दूसरा लेना होगा। आखिर यह तो बताइये कि यह शैतानी का कार्य किसने किया?’
मैंने-छोटा सा उत्तर था राविया का
‘अब तो साधु की हैरानी और भी बढ़ गई वह समझ ही नहीं पाया कि ईश्वर भक्त महिला अपने धर्म ग्रन्थ को नष्ट करने का कार्य कैसे कर सकती है। राविया ने कहा-पंक्ति को पढ़ा भी है।’
‘हाँ ! हाँ! उसमें लिखा है- शैतान से घृणा करो।’ साधु का कहना था।
‘मैंने जब से ईश्वर से प्रेम किया है तब से मेरे हृदय में घृणा बची ही नहीं है। ईश्वर प्रेम ने मेरे संकुचित दृष्टिकोण को विशाल सहृदयता में बदल दिया है। यदि शैतान भी आकर सामने खड़ा हो जाये तो उसे भी मैं प्रेम ही करूंगी।