सुख शाँति का राजमार्ग-धर्माचरण

August 1972

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धर्म एक राजमार्ग है जिस पर चलते हुए भौतिक प्रगति और आत्मिक शान्ति को प्राप्त करने के लिए लक्ष्य तक सरलतापूर्वक पहुँच सकना सम्भव हो सकता है।

पहुँचना सभी पूर्णता तक चाहते हैं- अभीष्ट सबको सुख है। इच्छा सभी की एक है पर रास्ता भटक जाने से लोग कँटीली झाड़ियों में उलझ जाते हैं। और सुख की चेष्टा करते हुए भी दुःख पल्ले पड़ता है।

प्रगति का राजमार्ग एक ही है-धर्म का अवलम्बन। इसी सड़क पर चलते हुए यात्रा सरल और सुनिश्चित रह सकती है। पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचने की कोई और सीधी पगडंडी नहीं है। जो उतावली करके जल्दी पहुँचने की आतुरता में पगडंडी ढूँढ़ते हैं वे भूल भुलैयों में भटक कर ऐसे दलदल में जा फँसते हैं जहाँ से न आगे बढ़ना होता है न पीछे हटना। मंजिल दूर रह जाती है और जाल में फँसे पक्षी की तरह एक नये संकट का और सामना करना पड़ता है।

अधर्म का रास्ता अपनाकर भौतिक प्रगति के लिए आतुर लोग पगडंडी पर चलने वाले लोग ही हैं। उन्हें देरी स्वीकार नहीं। बीज बोने के दिन ही उन्हें फल चाहिए अंकुर उगने से लेकर पौधे को विकास क्रम पूरा करने में जो समय लगता है उतनी प्रतीक्षा वे नहीं करना चाहते। यह उतावली अवाँछनीय कार्य करने की अनीति पूर्वक उपार्जन के लिये विवश करती है। आज की इच्छा कल ही पूरी हो जाय-परसों के लिए इन्तजार न करना पड़े इस जल्दबाजी में लोग भटकते और कुमार्गगामी बनते हैं। तत्काल कुछ मिलता भी दीखे तो वह जुगनू की चमक जैसा जादू होता है। उसमें ठहरने की क्षमता जरा भी नहीं होती। रोशनी में चमकते पानी के बुलबुले मोती जैसे दीखते भर हैं उन्हें संग्रह करके कोई मोती का व्यापारी नहीं बन सकता। अधर्म का आचरण करके किसी ने भी आज तक स्थिर प्रगति नहीं की। ओस चाटने से किसी की प्यास नहीं बुझी। अनीति की कमाई किसी को शान्ति नहीं दे सकी।

धर्म का मार्ग वैसा ही है जैसा विद्यार्थी का क्रमिक अध्ययन करते हुए स्नातक बनना। माली विधिवत- बगीचा लगाता है और तत्परतापूर्वक शाँत चित्त से पौधों को सँभालता रहता है। वह जानता है कि फल नियत अवधि पूरी होने पर ही आवेंगे। आज विद्यालय में भर्ती होने वाला छात्र कल एम.ए. बनने को आतुर हो तो नकली प्रमाण पत्र ढूंढ़ने का ही कुछ जाल रचेगा। आम की गुठली से पौधा बनने और उन पर फल लगे दिखाते हुए बाजीगर फिरते रहते हैं पर उन जादू के पेड़ों से आम की फसल उगाने का उपार्जन सम्भव नहीं। न वह एम.ए. का नकली प्रमाण-पत्र काम आता है और न बाजीगर का बगीचा यशस्वी होता है। तुर्त-फुर्त सफल बनने का लालच ही मनुष्य को अधर्म का मार्ग अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस कँटीली पगडंडी पर चलने के लिये जो भी मचला उसने धोखा ही खाया है कष्ट ही उठाया है।

धर्म का पहला लक्षण है धैर्य। भगवान मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाते हुए पहला बताया है -’धृति’। धृति अर्थात् धैर्य। धैर्य का तात्पर्य है उतावली छोड़कर, अभीष्ट प्रयोजन का अभीष्ट मूल्य चुकाने की व्यवस्था बनाना लम्बी मंजिल को क्रमिक गतिशीलता के साथ साहस और उत्साह के साथ पूरी करना।

धर्म की राह पर चलते हुए ही भौतिक प्रगति और आत्मिक पूर्णता का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है। धार्मिक व्यक्ति का पहला प्रयास अपने गुण, कर्म, स्वभाव को परिष्कृत करना होता है। उसमें जहाँ-जहाँ मलीनता होती है वहीं धर्म वृत्ति उसे स्वच्छ करती है। इस स्वच्छता के साथ ही वह साहस विकसित होता है जिसके सहारे सन्मार्ग पर चलते हुए चिरस्थायी प्रगति और सुख शान्ति का वरण किया जा सके।



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