मानव-जाति, युग-युगान्तर से उन स्वार्थी लोगों द्वारा अज्ञान में कैद रक्खी गई है, जिनका लक्ष्य मनुष्य के दिमागों को संकुचित और अव्यवस्थित बनाये रखना रहा है।
-आर॰ जैफरीज
हृदय के संकुचन के समय यदि रक्तचाप 160 एम.एम. से अधिक हो और प्रकुँचन के समय वह 90 एम.एम. से अधिक हो तो रक्तचाप बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में वाये क्षेमककोष्ट पर अधिक दबाव पड़ता है-रक्त संचार से अधिक शक्ति लगानी पड़ती है। यह क्रम कैसे रोका जाय, इसके लिए अन्य चिकित्सा इतनी उपयोगी सिद्ध नहीं हुई जितना कि सम्मोहन सफल रहा।
माँस पेशियों द्वारा उत्पादित और त्वचा तन्तुओं द्वारा संचारित शरीरगत ऊर्जा को संकल्प शक्ति द्वारा एकत्रित करना और उसे किसी दूसरे के कष्ट निवारण में प्रयोग करना यही मैस्मरेजम का प्रचलित प्रयोग है। पर यह आरम्भ है अन्त नहीं। यह एक छोटा सा उपचार मात्र है। योग की तंत्र शाखा में इस शरीरगत ऊर्जा का उच्चस्तरीय उत्पादन और प्रयोग का विधान विज्ञान भरा है। यदि इस आधार, इस शक्ति स्रोत से लाभ उठाया जा सके तो मनुष्य अपना और दूसरों का असीम हित साधन कर सकता है।