अब शुभारम्भ नव-निर्माणों को होता है।
मिलकर ऊँचे स्वर में बोलो साहस की जय॥
अब नहीं बाँसुरी-हम तो शंख बजायेंगे।
अब पथ के कांटों से होंगी दो-दो बातें ॥
अब छिप जाएँ बेशक शशि झिलमिल तारे।
अब दीपावली से होंगी नितदीपित -रातें॥
हर दिल में निष्ठा की ज्वाला-सी धधक उठी।
अब नहीं रहा कण मात्र अँधेरे का चिर भय॥ मिल.
दे हमें न कोई बाँह-अगर हम गिर जाएँ।
तलवों के छालों में भी दर्द नहीं होगा।
उत्साह और साहस जागा है ऐसा-जो।
झरनों-सरिउद्गम-झंझा-में न कहीं होगा॥
अब कौन सहारे पर आश्रित रह सकता है?
अपने हाथों में रखते हैं साहसी विजय॥ मिल.
सपने करने साकार -चले हैं दीवाने।
है कर्म हमारा वेद-लगन ही गीता है॥
उर में जागा रामत्व-अकेले चलने का।
रावण्य दलन में छिपी हमारी सीता है॥
खुद मिटकर बलिदानों की उमर बढ़ाएँगे।
साहस का मसि-इतिहास रचेगी फिर अक्षय॥ मिल.
अब नहीं हमारी राहों को रोके कोई।
ज्वालामुखियों-सा वेग हमारे दिल में है॥
यदि हमसे पूछे कोई प्राण कहाँ पर हैं?
तो उत्तर यही मिलेगा-वह मंजिल में है।
अब ज्वार सिन्धु का भी न डुबा सकता हमको।
जग चुकी हृदय में ज्वाला-ऐसी साहस मय॥ मिल.
गाएँगे आज तराने, जय के -जीवन के।
स्वर-ताल सजाएगी मन की भावुक सरिता।
कल विजय पर्व मनने वाला है जो सुमधुर।
उनको सुनने आएगा अम्बर से सविता॥
संग चलो-कि छोड़ो साथ-तुम्हारी मर्जी है।
हम स्वयं सँवारेंगे अपने गीतों की लय।
मिलकर ऊँचे स्वर में बोलो साहस की जय॥
-माया वर्मा
*समाप्त*