कुमारी कन्याओं की आध्यात्मिक गरिमा

August 1972

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साधु और ब्राह्मण की गरिमा इसलिए बताई गई है कि उन्होंने सात्विकता की मात्रा अपने भीतर सर्व-साधारण की अपेक्षा अधिक मात्रा में धारण की होती है। असल से साधु ब्राह्मण की गरिमा किसी वंश या वेश की नहीं वरन् साधनात्मक प्रयत्नों द्वारा उनके बढ़े हुए सतोगुण की ही है।

यही गरिमा स्वभावतः कन्याओं में होती है। नर की अपेक्षा नारी में सात्विकता की मात्रा अधिक होना सर्वविदित है। वह मात्रा ब्रह्मचारिणी अविवाहित कन्याओं में और भी अधिक होती है। इसलिए कन्याओं को स्वभावतः वह स्थिति प्राप्त है जो ब्राह्मण और साधुओं को बहुत प्रयत्न एवं साधन करने के उपरान्त प्राप्त होता है।

नवरात्रि की साधना के उपरान्त कन्या भोज का प्रचलन है। ब्रह्मभोज के समान ही कन्या भोज है। आज की परिस्थिति में तो कन्या का महत्व ब्राह्मण से भी अधिक है। कारण कि ब्रह्मचर्य पालन, बालसुलभ निर्मलता एवं कन्या तत्व की स्वाभाविक विशेषता के कारण वे आज के नाममात्र के ब्राह्मणों की अपेक्षा कहीं आगे हैं। इसलिए विवेकशील लोग आवश्यकता पड़ने पर ब्राह्मण भोजन की अपेक्षा कन्या भोजन को अधिक उपयुक्त मानते हैं।

साधना विज्ञान में ‘कुमारी’ को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप माना गया है और इसी नाम से उसकी प्रतिमा स्थापित करके पूजा विधान बनाया गया है। बाल-गोपाल को भगवान कृष्ण का सर्वोत्तम प्रतीक माना जाता है। युवावस्था के उभार उतने सात्विक नहीं रहते जितने बालकपन के होते हैं। इसलिए सतोगुणी निष्ठा वाले भक्त साधक सदा भगवान के बाल रूप को ही अपनी ध्यान प्रतिमा में स्थापित करते हैं और उसी रूप की प्रतिमा बनाते हैं।

युवावस्था की देवियों की अपेक्षा ‘कुमारी’ पूजन को इसलिए शक्ति साधना में प्रमुख स्थान है कि उसमें विकारों का उद्भव ने होने से सात्विकता की मात्रा अधिक रहती है। जहाँ अन्य देवियाँ विवाहित होने के कारण रजोगुणी क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी हैं वहाँ ‘कुमारी’ का ब्रह्मचर्य एवं शैशव उसकी गरिमा को सहज ही बढ़ा देता है। शक्ति उपासना क्षेत्र में कुमारी पूजन को प्राथमिकता इसीलिए दी गई है।

कुमारी कन्याओं में सात्विकता का अंश अधिक रहने से उन्हें उपासना क्षेत्र में प्राथमिकता दी गई है तो यह उचित तर्क संगत एवं तथ्यपूर्ण ही है। जप अनुष्ठान पाठ, पूजन आदि में कन्याएँ जितनी अधिक सफलता प्राप्त करती हैं, उतनी अन्य किसी आयु में संभव नहीं होती।

शान्तिकुञ्ज (हरिद्वार) में कुमारी कन्याओं द्वारा अखण्ड दीपक पर अखण्ड गायत्री जप कराया जा रहा है। 24 लक्ष के 24 पुरश्चरण 6 वर्षों में पूरे होंगे। यह अनुष्ठान ब्राह्मणों की अपेक्षा कन्याओं द्वारा इसलिए कराया जा रहा है कि कुमारिकाओं की सात्विकता से अभीष्ट परिणाम अधिक सुनिश्चित रूप से सफल होंगे।

कुमारी कन्याओं की सतोगुणी विशेषताओं के कारण शास्त्र में उन्हें पूजा के योग्य ठहराया गया है :-


महाराज प्रयत्नेन सर्वसिद्धफलप्रदम्।

सर्वयज्ञोत्तम भूप कुमारीपूजनं शृणु॥

कृते यस्मिन्महालक्ष्मीरचिरेण प्रसीदति।

आमन्त्रयेद्दिने पूर्व कुमारीं भक्तिपूर्वकम्॥

पूजादिने समाहूय कुमारी माद्यदेवताम्।

कुमारी पूजनं कृत्वा महालक्ष्मी प्रसीदति॥

-वृहज्जोतिषार्णक धर्मस्कन्ध


शक्ति पूजा में कुमारी पूजन का बड़ा महत्व है। उससे सब सिद्धियाँ मिलती है। यह पूजन यज्ञों से भी उत्तम है। उससे महालक्ष्मी प्रसन्न होती है।


देवीबुद्धय्या महाभक्तया तस्माता परिपूजयेत्

सर्वविद्यास्वरूपा हि कुमारी नात्र संशयः।

एका हि पूजिता बाला सर्व हि पूजितं भवेत्।

-योगिनी तंत्र


देवी भावना से कुमारी कन्या पूजन करो। कन्याएँ निस्संदेह विद्या रूपिणी हैं। एक बालिका की पूजा करने पर उसमें समस्त देवी देवताओं की पूजा हो जाती है।


तस्माच्च पूजयेद्वालाँ सर्वजातिसमुद्भवाम्।

जातिभेदों न कर्तव्यः कुमारी पूजने शिवे॥

-रुद्रयाझल तंत्र

कुमारिकाओं का पूजन बिना जाति भेद के करें। जो उन में जाति भेद का विचार करता है तो वह भूल करता है।


कुमारी पूज्यते यत्र से देशः क्षितिपावनः।

महापुण्य तमो भूयात्समन्तात्क्रोश पंचकम्॥

-योगिनी तंत्र


जहाँ कन्या की पूजा होती है वह स्थान पवित्र हो जाता है। पाँच कोस तक उस स्थान की पवित्रता बिखरी रहती है।


अन्ते च प्राप्यते तेन परं निर्वाणमुत्तमम्।

कुमारी पूजने काले साधकः शिवताँ व्रजेत॥

-योगिनी तंत्र


कन्या पूजन करने वाले को शिवत्व की प्राप्ति होती है और वह निर्वाण पद का अधिकारी बनता है।


कुमारी पूजन फलं नार्हामि सुन्दरि।

जिह्व कोटि सहस्रै स्तु वक्त कोटि शतैरपि॥

तस्माच्व पूजयेद्वालाँ सर्व जाति समुद्भवाम।

जाति भेदों न कर्त्तव्यः कुमारी पूजने शिवे॥


अर्थ-भगवती गायत्री देवी की उपासना में कुमारी कन्याओं की पूजन का महान फल होता है। भगवान शंकर स्वयं मुख से कहते हैं- सुन्दरी! मैं तो कुमारी के पूजन का फल सहस्र करोड़ जिह्वा तथा शत कोटि मुखों से भी नहीं कह सकता हूँ। इसलिये सभी जातियों की कन्याओं का पूजन करें। शिवे! कुमारी कन्या के पूजन में जाति के भेद का तो ध्यान कभी करना ही नहीं चाहिए।


जातिभेदान्म देशानि नरकाल निवर्त्तते।

निचिकित्सा परो मन्त्री ध्रुवञ्च पातकी भवेत्।

देवी वुद्धया महा भक्ताया तस्मस्ताँ परिपूजयेत्।

सर्व विद्या स्वरूपा हि कुमारी मात्र संशयः॥

एकाहि पूजिता वाला सर्व हि पूजितं भवेत्।


अर्थ- कुमारी कन्या के पूजन में जाति भेद का विचार करने पर घोर नरक में जाकर गिरता है और वहाँ से कभी भी वापिस नहीं लौटता है। मन्त्रवान् मनुष्य यदि संदिग्ध होकर कर्म किया करता है तो महापातकी हो जाता है-इसमें कुछ भी संशय नहीं है। अतएव परमोत्कृष्ट भक्ति की भावना से कुमारी कन्या को साक्षात् देवी सावित्री का ही स्वरूप समझकर उसकी सांगोपाँग अर्चना करनी चाहिए। कुमारी कन्या सर्वविद्या स्वरूपिणी होती है- इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है।

अर्थ-जिस स्थान में कन्या (कुमारी) की पूजा होती है वह स्थान भूमण्डल में परम पवित्र होता है। वह स्थान चारों ओर पाँच कोश तक अतीव पुण्यमय होता है। इस भारत मण्डल में कुमारी की पूजा करने पर इस कुमारी की देह से प्रत्यक्ष रूप में एक अद्भुत प्रभा प्रकाशित होती है।

पृथ्वी पर शयन करें और नित्य कुमारी कन्याओं का पूजन करें। क्रमशः एक पूजन के लिए एक कन्या नो दिन तब बढ़ाता जाय।

कुमारी पूजन से दुख दारिद्रय का और शत्रुओं का नाश होता है तथा धन, आयु और बल की वृद्धि होती है। देव तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाली इन कुमारियों की देवी रूप में पूजा करें। कन्याओं को वस्त्र, अलंकार, माला गंध एवं यंत्रों से पूजा करनी चाहिए। कुमारी कन्याओं के पूजन सहित यह नवरात्रि का व्रत सब प्रकार श्रेयस्कर है।

-देवी भागवत

असुरों का संहार करने वाली उस कुमारी रूप देवी की सभी ने पूजा की, देवताओं ने फूल बरसाये। तब से कुमारी पूजा चल पड़ी।

कुमारी पूजा करने वालों की काया कंचन जैसी हो जाती है। और वह भैरव की तरह प्रसन्न रहता है।

-योगिनी तन्त्र



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