प्रयाग में द्विवेदी मेले की चहल-पहल थी। वहाँ सर गंगानाथ झा की, अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन किया गया। जैसे ही द्विवेदी मंच पर आये कि सर गंगानाथ उनके चरण स्पर्श करने के लिए झुके। उसी क्षण द्विवेदी जी ने भी सर गंगानाथ के चरण छूने का प्रयास किया। द्विवेदी जी बोल—“आप मेरे गुरु हैं आपने मुझे संस्कृत लिखना सिखाया है, अतः मुझे चरण स्पर्श का अवसर दीजिए।” सर गंगानाथ बोले—“नहीं, आप मेरे गुरु हैं, क्योंकि मुझे हिन्दी लिखना तो आपने ही सिखाया था।”
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