दांपत्य जीवन की तैयारी और पत्नी−व्रत

January 1970

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‘स्टिकल−बैक’ नामक की एक मछली होती है, जो समुद्र में ही पाई जाती है। डॉ. लार्ड ने इस मछली की विभिन्न आदतों और क्रियाओं का बहुत सूक्ष्मता से अध्ययन किया। बैकोवर आइलैण्ड में महीनों रह−रहकर आपने इस मछली की जीवन पद्धति का अध्ययन किया और बताया कि मनुष्य चाहे तो इससे अपने पारिवारिक जीवन को सुखी और सुदृढ़ बनाने की महत्वपूर्ण शिक्षायें ले सकता है।

नर स्टिकल बैक अपना घर बसाने के लिये बहुत पहले से तैयारी प्रारम्भ कर देता है। सबसे पहले सारे समुद्र में घूम−घूमकर वह कोई ऐसा स्थान ढूँढ़ निकालता है, जहाँ पर पानी न बहुत तेजी से बह रहा हो न बहुत धीरे। जगह शाँत एकान्त हो और वहाँ हर किसी का पहुँचना भी सम्भव न हो।

प्राचीन काल की जीवन−प्रणाली और शिक्षा पद्धति पर दृष्टि दौड़ाकर देखते हैं तो पता चलता है कि तत्कालीन ऋषियों−मुनियों एवं सामाजिक मार्गदर्शक आचार्यों ने भी यह भलीभाँति अनुभव किया था कि दाम्पत्य और गृहस्थ जीवन एक महत्वपूर्ण योग साधना है, उसके लिये आवश्यक तैयारियाँ न की जायें तो लोगों के वैयक्तिक जीवन ही नहीं पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्थायें भी लड़खड़ा सकती हैं। जीवन के प्रथम 25 वर्ष ब्रह्मचर्यपूर्वक रहकर विद्याध्ययन करने और पाठ्य−क्रम में धार्मिक, आध्यात्मिक नैतिक, साँस्कृतिक विषयों के समावेश के पीछे एक मात्र उद्देश्य और रहस्य यही था कि आने वाले जीवन और जिम्मेदारियों को वहन करने के लिये शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, चारित्रिक त्रुटि न रह जाये। पूर्ण तैयारी कर लेने के फलस्वरूप ही उन दिनों के दाम्पत्य जीवन, पारिवारिक और सामाजिक संगठन, प्रेम−मैत्री, करुणा, दया, क्षमा, उदारता आदि सुख−संतोष और स्वर्गीय परिस्थितियों से भरे−पूरे रहते थे। आनंद छलकता था उन दिनों, पर आज जबकि शिक्षा के ढंग−ढाँचे में, हमारी रीति−नीति और जीवन पद्धति में उस तैयारी के लिये कोई स्थान नहीं रहा, तब हमारे पारिवारिक जीवन में कोई उल्लास नहीं रह गया। दाम्पत्य जीवन असन्तोष और अस्तव्यस्तता के पर्याय बन गये हैं।

मनुष्य भूल कर सकता है पर सृष्टि के सैंकड़ों जीव−जन्तुओं की तरह स्टिकल बैक मछली यह भूल कभी नहीं करती। जैसे उसे प्रकृति से यह प्रेरणा मिली हो कि वह अपनी जीवन पद्धति द्वारा मनुष्य को सिखाये और समझाये कि जो आनन्द पहले से तैयारी किये हुये दाम्पत्य जीवन में है, वह चाहे जैसे गृहस्थी बसा लेने में नहीं है। यह सारा उत्तरदायित्व पति का है कि वह समुचित व्यवस्थायें स्वयं जुटाये। अपनी तैयारी में कोई त्रुटि न हो तो पत्नियों की और से पूर्ण सहयोग और समर्थन न मिले ऐसा कभी हो ही नहीं सकता। इस मछली की तरह तैयारी किये हुये नर दाम्पत्य जीवन का ऐसा आनन्द पाते हैं कि उन्हें न तो स्वर्ग की कल्पना होती है और न मुक्ति की ही। वे इसी जीवन में स्वर्ग−भोग का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।

तत्परतापूर्वक ढूँढ़−खोज के बाद जब उपयुक्त स्थान मिल जाता है, तब स्टिकल बैक पत्नी के लिये सुन्दर घर बनाने की तैयारी करता है। इसके लिये उस बेचारे को कितना परिश्रम करना पड़ता है, यह बात अपने माता−पिता की पीठ पर चढ़े, विवाह की कामना करने वाले युवक भला क्या समझेंगे? स्टिकल बैक पानी में तैरती हुई छोटे−छोटे पौधों की नरम−नरम लकड़ियाँ, तैरते हुये पौधों की जड़ें इकट्ठी करता है और उन्हें चुने हुये स्थान पर ले जाता है। विवाह के शौकीन स्टिकल को पहले खूब परिश्रम और मजदूरी करनी पड़ती है। अपने शरीर से वह एक प्रकार का लसलसा पदार्थ निकालता है और एकत्रित सारी वस्तुओं को उसी में चिपका लेता है ताकि उसका इतना परिश्रम व्यर्थ न चला जाये। उसने जो लकड़ियाँ एकत्रित की हैं, वह अपने स्थान तक पहुँच जायें।

स्टिकल बैक पूरे आत्म−विश्वास के साथ काम करता है। सारा एकत्रित सामान मजबूती से चिपक गया है, इसका विश्वास करने के लिये वह अपने शरीर को फड़फड़ाता हुआ नाचता है, जैसे उसे परिश्रम में आनन्द लेने की आदत हो। जब एक बार विश्वास हो गया कि सामान गिरेगा नहीं, तब आगे बढ़ता है और पूर्व निर्धारित स्थान पर इस सामान से मकान बनाता है। शरीर का लसलसा पदार्थ यहाँ सीमेंट का काम करता है और लाई हुई लकड़ियाँ ईंट−पत्थरों का। आगन्तुक वधू के लिये महल बना कर एक बार वह उसे घूम−घूमकर देखता है। लगता है अभी वैभव में कुछ कमी रह गई। फिर वह रेत के बारीक टुकड़े मुख में भर कर लाता है और मकान के फर्श पर बिछाता है। कोठरी में कहीं टूट−फूट की गुँजाइश हो तो उसे ठीक करता है। सारा मकान वार्निस किया हुआ सा हो जाने के बाद ही उसे संतोष होता है। जब यह तैयारियाँ पूर्ण हुईं तब वह स्वयं मादा की खोज में निकलता है। उसे दहेज और लेन−देन की आवश्यकता नहीं, क्योंकि वह जानता है, नारी—नर की अपनी आवश्यकता भी है, इसलिये प्रिय वस्तु को भरपूर स्वागत और सम्मान अपनी ओर से ही क्यों न दिया जाये। वह मनुष्यों की तरह का दम्भ और पाखण्ड प्रदर्शित नहीं करता।

उपयुक्त पत्नी मिल जाने पर वह उसे घर लाता है। पत्नी कुछ दिन में गर्भावस्था में आती है, तब यह उसे घूमने को भेजता रहता है, घर और अंडों की देख−भाल तब वह स्वयं ही करता है। यह उनके भोजन आदि का ही प्रबंध नहीं करता सुरक्षा के लिये दरवाजे पर कड़ा पहरा भी रखता। मि. फ्रैक बकलैण्ड ने इसकी कर्मठता का वर्णन करते हुये लिखा है कि मकान में थोड़ी−सी भी गड़बड़ी हो तो यह उसे तुरन्त ठीक करता है।

स्टिकल बैक अपने बच्चों और पत्नी के पालन का उत्तरदायित्व पूरी सूझ समझ के साथ निबाहता है। वह उन्हें पर्दे में नहीं रखता। पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे, इसके लिये वह अपने मकान में दो दरवाजे रखता है। इससे वहाँ के पानी में बहाव बना रहता है और ताजी ऑक्सीजन मिलती रहती है, यदि बहाव रुक जाये तो वह तुरन्त शरीर फड़फड़ाकर बहाव पैदा कर देता है, जिससे रुके हुये पानी की गन्दगी प्रभावित न कर पाये।

स्टिकल बैक का जीवन कितना कलात्मक और सुरुचिपूर्ण है। इधर बच्चे निकलने लगे, उधर उसने मकान के ऊपरी भाग छत को अलग करके एक बढ़िया झूला तैयार किया। मनुष्यों की तरह गुम−सुम का जीवन उसे पसन्द नहीं। झूला बनाकर उसमें बच्चों को भी झुलाता है और पत्नी को भी। स्वयं उस क्षेत्र में परेड करता रहता है, जिससे उसके आनन्द और खुशहाली की अभिव्यक्ति होती है पर दूसरे दुश्मन और बुरे तत्त्व डरकर भाग जाते हैं, जैसे कला प्रिय और सुरुचिपूर्ण सद्गृहस्थ से अवगुण दूर रहने से अशाँति पास नहीं आती। बच्चे झूला छोड़कर इधर−उधर भागते हैं तो यह उन्हें बार−बार झूले में डाल देता है, जब तक बच्चे स्वयं समर्थ न हो जायें, यह उन्हें आवारागर्दी और कुसंगति में नहीं बैठने देता। अपनी रक्षा करने में जब वे समर्थ हो जाते हैं, तभी उन्हें जाने और नया संसार बनाने की अनुमति देता है।

स्टिकल बैक की तरह मनुष्य का पारिवारिक जीवन भी तैयारी, उद्देश्य और सुरुचिपूर्ण होता, पतिव्रत ही नहीं पत्नीव्रत का भी ध्यान रखा गया होता तो सामाजिक जीवन हँसता खिलखिलाता हुआ होता।


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