लोकमान्य तिलक के नाम से कौन परिचित न होगा। यह उनकी अनुपम लगन ही थी, जो उनका नाम इतिहास में अमर कर गई। वे केसरी का अग्रलेख लिख रहे थे। तभी समाचार आया कि पत्नी की हालत चिन्ताजनक है। सिर उठाकर सहज भाव से सुन लिया और पुनः अपने कार्य में रत हो संसार छोड़ दिया। बाद में इस बात के लिये लोगों ने तिलक को बहुत बुरा−भला कहा। पर सारी बातों का उन्होंने एक ही उत्तर दिया—“मनुष्य से बड़ा भगवान् है। पत्रकार जन−जन के हृदय में व्याप्त भगवान् का पुजारी होता है। ऐसे भगवान की पूजा छोड़कर जाना मेरे लिए सम्भव न था।” धन्य थे वे और उनकी कर्त्तव्य के प्रति अडिग, अटूट निष्ठा।
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