मुशल पर्व आस्ट्रेलियाई खरगोशों का

January 1970

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खरगोश आस्ट्रेलिया में बहुतायत से पाया जाता है। खरगोश शीघ्र−प्रजनन प्राणी है, उसे कुछ ही समय में सारे आस्ट्रेलिया द्वीप में अधिकार जमा लेना चाहिये था। पर ऐसा न होना यह बताता है कि प्रकृति में एक ऐसी व्यवस्था भी है, जो जनसंख्या वृद्धि को बलपूर्वक रोकती रहती है, यदि वह ऐसा न करे तो पृथ्वी में किसी प्रकार का अस्तित्व ही सम्भव न रहे।

यह व्यवस्था है विस्फोट की। जनसंख्या अनियन्त्रित होती है तो एक ही जाति के प्राणी लड़−भिड़कर स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं। आस्ट्रेलिया के खरगोश इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं।

एक जोड़ी खरगोश से एक बार में कम से कम 6 बच्चे पैदा होते हैं। खरगोश जब 6 माह का होता है, तभी उसमें प्रजनन शक्ति आ जाती है। एक बार बच्चा देना आरम्भ करने के बाद वह हर तीसरे माह 6 बच्चे देता चला जाता है। इस तरह वर्ष में एक जोड़े से 24 बच्चे पैदा हो जाते हैं। इन चौबीस में से बारह बच्चे ऐसे होते हैं, जो 6 माह बाद स्वयं भी बच्चे पैदा करने लगते हैं। 9 वें महीने में बारहवें महीने 72 और कुल मिलाकर एक जोड़े से एक वर्ष में 24+36+72=132 खरगोश पैदा हो जाते हैं। चक्रवृद्धि ब्याज की दर से यह संख्या बढ़ती रहती है। यदि एक खरगोश 5 वर्ष जीवित रहे तो इस अवधि में उसके परिवार की संख्या 132+144+288+576+1152+2304+4608+9216+18432+36864+73728+147556+295112=590112 हो जायेगी। यह एक जोड़े की पैदाइश होगी। बाबाजी कुल 5 वर्ष के ही होंगे यदि ऐसे बाबाजी की संख्या कुल बीस ही हो जाये तो वहाँ खरगोशों की संख्या इस अवधि में 11802240 (एक करोड़ 18 लाख दो हजार दो सौ चालीस हो जाये)।

आस्ट्रेलिया का कुल क्षेत्र फल 30 लाख वर्ग मील है और वहाँ की जनसंख्या कुल 90 लाख है। यदि प्रकृति ने इन्हें अपने ही अनुपात से बढ़ने दिया होता तो आज आस्ट्रेलिया में एक भी तो आदमी न होता। हरियाली का एक भी तिनका न होता। दैवयोग से आस्ट्रेलिया में माँसभक्षी जीव भी नहीं पाये जाते, इसलिये इनके अस्तित्व को वहाँ कोई खतरा भी नहीं है। खरगोश का वहाँ एकछत्र साम्राज्य होता।

तो भी वहाँ खरगोश कम क्यों हैं, यह जानने की उत्कंठा वैज्ञानिकों में पैदा हुई जनसंख्या का अध्ययन किया। उन्होंने टेलेफोटोलेन्स (ऐसे कैमरे जो किसी स्थान पर लगा दिये जाते हैं, फोटो खींचने वाला पीछे चला आता है और दूर से ही फोटो लेता रहता है।) लगाकर बड़े−बड़े समूहों के चित्र लिये। सभी चित्र बड़े मजेदार थे। और यह दिखा रहे थे कि उनमें जल और अन्न के सीमित कोटे को प्राप्त करने के लिये कितनी मार−पीट होती है। आपस में ही उनके लड़−झगड़कर नष्ट होते दिखाई देने वाले यह चित्र आज भी ‘आस्ट्रेलियन न्यूज एण्ड इन्फॉर्मेशन ब्यूरो’ के पास सुरक्षित हैं। एक चित्र जो ‘किनशिप आफ ऐनीमल एण्ड मैन’ पुस्तक, जिसके लेखक मार्गन हैं, में पेज नम्बर 92 में छपा है। बड़ा ही कौतूहलवर्धक है वह। एक छोटे से गड्ढे में पानी पीने के लिये खरगोश का समूह उमड़ पड़ा है। वे एक दूसरे के ऊपर चढ़कर सबसे पहले आगे पहुँचकर पानी प्राप्त करने की आपा−धापी में हैं। गड्ढा छोटा है पानी बहुत कम। सब आपस में झगड़ते हैं कितने ही युद्ध में मर जाते हैं, कितने ही प्यास और भूख से तड़पकर दम तोड़ देते हैं।

खरगोश ठहरा विवेकहीन प्राणी पर आज का मनुष्य तो उससे भी गया−गुजरा लगता है, जो देखता और समझता है कि पृथ्वी में आजीविका के साधन सीमित हैं तो भी वह जनसंख्या बढ़ाता ही चला जाता है। आगे संयम न बरता गया तो आस्ट्रेलियाई खरगोशों का सा मुशल पर्व मनुष्यों में चल पड़े इसका कुछ ठिकाना नहीं?

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