एक बार चार मित्र यात्रा पर निकले। उसमें तीन ‘बुद्धिहीन वैज्ञानिक’ थे और एक ‘बुद्धिमान अवैज्ञानिक’। मार्ग में उन्हें एक मरे हुए शेर का अस्थि पंजर मिला। बुद्धिहीन वैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों नहीं हम उस पर अपनी विद्या की परीक्षा कर लें। तुरन्त एक ने उसका अस्थि संचय किया, दूसरे ने उसमें चर्म माँस और रुधिर संचारित किया और तीसरा उसमें प्राण डालने ही वाला था कि चौथे बुद्धिमान अवैज्ञानिक ने कहा—“अरे−अरे, यह आप क्या कर रहे हैं? आप सिंह को जीवित करने जा रहे हो। वह जीवित होते ही हमें खा जायेगा। पहले अपनी रक्षा का उपाय तो कर लो।” लेकिन उसकी बात किसी ने नहीं मानी।
लाचार, वह अकेला वृक्ष पर चढ़ गया। उधर तीसरे ने जैसे ही उसमें प्राण डाले शेर जीवित होकर उन तीनों को खा गया।
प्रत्यक्ष को देखने वाला आज का संसार भी इन बुद्धिहीन वैज्ञानिकों की तरह है। जो शरीर के लिये तो साधन बढ़ाते चले जा रहे हैं पर आत्मा का तनिक भी ध्यान नहीं देते।