वाणी की शक्ति

January 1970

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गुरुकुल के विद्यार्थियों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि संसार में सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है? कोई कुछ कहता, कोई कुछ! जब पारस्परिक वाद−विवाद का कोई निर्णय न निकला तो फिर सभी विद्यार्थी गुरु जी के पास पहुँचे।

गुरु जी ने शिष्य की बात सुनकर कहा—“तुम सबकी बुद्धि खराब हो गई है।” और शाँत हो गये। शिष्य गुरुदेव की इस छोटी बात को भी सहन न कर पाये और थोड़ी ही देर में उनके चेहरे तमतमा गये। अपने लाल−लाल नेत्रों से गुरु जी को घूरने लगे।

थोड़ी देर बाद गुरु जी शिष्यों से बोले—“तुम सब पर आश्रम को गर्व है, तुम लोग अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं खोते, अवकाश में समय में भी ज्ञान की चर्चा करते हो।” अब तो शिष्यों के मन में स्वाभिमान जागृत हुआ और उनके चेहरे खिल उठे।

गुरु जी ने कहा—“मेरे प्यारे शिष्यों! इस संसार में वाणी से बढ़कर कोई शक्तिशाली वस्तु नहीं है। वाणी से मित्र को शत्रु तथा शत्रु को मित्र बनाया जा सकता है। ऐसी शक्तिशाली वस्तु का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को सोच−समझकर करना चाहिये। वाणी का माधुर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। और न बनने वाला कार्य भी बन जाता है।”

शिष्यगण सन्तुष्ट होकर लौट गये और उस दिन से मीठा बोलने का अभ्यास दृढ़तापूर्वक करने लगे।

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