यदि मेरी मित्रतायें मेरा साथ नहीं देतीं तो न दें। प्रेम मुझे छोड़ देता है तो छोड़ दे। मेरा तो एक ही आग्रह है कि मैं उस सत्य के प्रति सच्ची रह सकूँ, जिसकी सेवा और परिपालन के लिये, मैंने अपनी इच्छाओं का, वैभव विलास से परिपूर्ण पाश्चात्य जीव−पद्धति तक का बहिष्कार कर दिया है। जब तक मेरे शरीर में रक्त की अन्तिम बूँद और अन्तिम श्वास विद्यमान है, मैं एकमेव सत्य की प्राप्ति के हित तिल−तिल जलती रहूँगी। सत्य ही तो मनुष्य जीवन का सार है।
यदि वह सत्य मुझ से रेगिस्तान में चलने को कहेगा तो मैं उसके पीछे−पीछे जाऊँगी, मुझे उसे प्राप्त करने के लिये पर्वतों पर चढ़ना पड़ा, समुद्र की थाह लेनी पड़ी तो भी मैं पीछे नहीं हटूँगी। उसने माँग की मैं प्रेम से वंचित हो जाऊँ तो मुझे वह भी स्वीकार होगा पर सत्य का आश्रय मैं छोड़ नहीं सकती। मैं तो सत्य से चिपकी रहूँगी, भले ही मुझे यह दिखाई दे कि मुझे अपना कहने वाला भी कोई नहीं रहा। मेरी हार्दिक कामना है कि जब मैं मरूँ और मेरी समाधि बनाई जाये तो उस पर लिखा जाये—“उसने सब कुछ छोड़कर भी सत्य के पीछे चलने का प्रयत्न किया।”
—एनी बेसेंट
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