खून बहाना पसन्द नहीं

January 1970

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सिकन्दर जिस देश पर आक्रमण करने की तैयारी में था, उसी देश का राजा जब अपने सामने उपस्थित देखा तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। उसने सोचा कि यह हमारे सैन्यबल से भयभीत हो आत्म−समर्पण हेतु आया है। अतः वह गर्व से फूल उठा। पर बातों ही बातों में उसने सिकन्दर से कहा—“कृपया यह तो बताइये कि हमने आपका कोई अपकार तो किया नहीं, फिर हमारे राज्य पर आक्रमण की तैयारी कैसे कर दी?”

अभिमान के नशे में चूर सिकन्दर बोला—“तुम तो कायरों की तरह बातें करते हो, जाओ अब तुम्हारे राज्य पर आक्रमण नहीं करेंगे पर कम से कम सात वर्ष तक तुम्हें कर देना होगा।”

“आप जैसे ऐश्वर्यशाली राजा के लिए थोड़े से कर की शर्त शोभा नहीं देती। फिर इतनी कम धनराशि से आपका क्या बनता बिगड़ता है? क्या ही अच्छा हो कि हम दोनों मित्रता कर लें और अपनी प्रजा को सुख−शाँतिमय जीवन व्यतीत करने दें।” राजा ने सिकन्दर को समझाते हुए कहा।

सिकन्दर, राजा की बात मान गया। अन्त में राजा ने सिकन्दर को अपनी संपूर्ण सेना सहित राज्य में प्रीति−भोज हेतु आमन्त्रित किया। निश्चित समय सिकन्दर सारी सेना सहित पहुँच गया। स्वागत के लिए वहाँ राजा, मन्त्रीगण और समस्त सशस्त्र सैनिक उपस्थित थे। सिकन्दर अपनी सेना को चारों ओर से घिरा देख काँप उठा। उसे मित्रता के बीच विश्वासघात की गंध आने लगी।

राजा ने बड़े प्रेम से अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा—“सिकन्दर! मैं सेना की छोटी−सी टुकड़ी को लेकर आप सबका स्वागत करने आया था। वैभवशाली सम्राट का स्वागत भी तो उसी स्तर का होना चाहिए था। शायद आपको यह शंका है कि मैंने सैन्य दुर्बलता के कारण आपसे मैत्री की, पर इस विचार को आप भूल जाइये। मुझे व्यर्थ में ही लोगों का खून बहाना पसन्द नहीं है और न अब ही मैं युद्ध की इच्छा से यहाँ उपस्थित हुआ हूँ। हम सब आपकी अगवानी करने आये हैं। हमारा विश्वास शाँति और प्रेम में है, घृणा और युद्ध में नहीं।” इतना सुनकर सिकन्दर का सिर लज्जा से झुक गया।

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