राथचाइल्ड के पास एक दिन उनके एक कम्युनिस्ट मित्र पहुँचकर बोले—“मिस्टर राथचाइल्ड आपने इतना धन एकत्रित कर लिया है यह अन्याय है, इस पर आपका ही नहीं संसार का अधिकार है।”
राथचाइल्ड ने कहा—“सो तो है” और फिर एक पर्चे में कुछ गुणा भाग करने लगे। फिर जेब से दो सिक्के निकालकर मित्र महोदय को देते हुये बोले—“लीजिये और जो कोई आता जायेगा, उसे दो−दो पैसे देता जाऊँगा। मेरी कमाई इतनी ही है कि सारे मनुष्यों को दो−दो पैसे बाँट सकूँ।”
----***----