स्वप्नों की सत्यता का रहस्य क्या है?

January 1970

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“गुड नाइट सर !”—मित्र ने अमेरिका के प्रेसीडेन्ट अब्राहम लिंकन को भोज से विदाई देते हुए अभिवादन किया। उसके उत्तर में प्रेसीडेन्ट ने कहा—“गुड बाई डियर क्रुक (प्रिय क्रुक अन्तिम नमस्ते)।” यह शब्द तमाम मित्रों को चौंकाने वाला था। अँग्रेजी शिष्टाचार के नाते आमतौर पर ‘गुड बाई किसी लंबी विदा के समय किया जाता है पर लिंकन के लिये तो ऐसी कोई बात भी नहीं थी। ह्वाइट हाउस ने कोई ऐसी सूचना भी नहीं दी थी, जिसमें यह बताया गया हो कि श्री लिंकन कहीं जाने वाले हों।

एक दिन पूर्व ही लिंकन ने स्वप्न देखा था। उन्हें किसी ने गोली मारी है और उनका मृतक शव पृथ्वी पर पड़ा है। स्वप्न उन्होंने अपने जीवन में सैकड़ों देखे होंगे पर इस स्वप्न का उनके अन्तःकरण पर गहरा प्रभाव था। स्वप्न का विस्तृत विवरण देते समय उन्होंने अपने मित्र मि. क्रुक को बताया कि उन्हें जिस समय से स्वप्न में गोली लगने का दृश्य दीखा है, न जाने क्यों उसकी सत्यता पर विश्वास हो गया है। मि. क्रुक ने तब तो उस बात को हँसी में टाला पर जब एक भोज से प्रेसीडेन्ट ने ह्वाइट हाउस के लिये चलते समय बड़ी गम्भीर मुद्रा में ‘गुड बाई’ कहा तो एकाएक सभी के चेहरे गम्भीर हो गये। 14 अप्रैल 1865 ही वह दूसरा दिन था, जिस दिन श्रीयुत लिंकन को गोली मार कर उनकी हत्या कर दी गई।

वैज्ञानिकों से एक प्रश्न है कि यदि मनुष्य भी सचमुच वृक्ष−वनस्पति की तरह केवल रासायनिक अस्तित्व या जड़ मात्र है तो जो बातें बड़ी−बड़ी मशीनें नहीं बता सकतीं, वह स्वप्नावस्था में कैसे मालूम हो गया। स्वप्नों के यह पूर्वाभास हमें यह सोचने के लिये विवश करते हैं कि आत्मा कोई चेतन तत्त्व है और वह अमरत्व, सर्वव्यापकता, सर्व अन्तर्यामिता आदि गुणों से परिपूर्ण है अन्यथा निद्रावस्था में हम उन सत्य बातों का आभास कैसे पा लेते, जिन्हें पदार्थ के किसी कण या मशीन द्वारा जाना पाना सम्भव नहीं है।

मनुष्य जितनी अधिक प्रगाढ़ निद्रा में होता है, पदार्थ विज्ञान के अनुसार उसे साँसारिक बातों का उतना ही विस्मरण होना चाहिये, किन्तु इलेक्ट्रो इनकेफैली ग्राम (एक प्रकार का यन्त्र जो मस्तिष्क में पैदा होने वाली विद्युत तरंगों की गणना करता है) के द्वारा प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. क्लीटमत ने यह सिद्ध किया कि निद्रावस्था जितनी ही गहरी होती है, उतने ही स्वप्न अधिक स्पष्ट और सार्थक होते हैं। उन्होंने यह दावा किया है कि स्वप्न देखना भी साँस लेने की तरह जीव की एक स्वाभाविक क्रिया है। स्वाभाविक क्रियायें यदि सत्य बातों का ज्ञान करा सकती हैं तो उनकी अनुभूति करने वाले तत्त्व को जड़ नहीं कहा जा सकता है। उनका यह भी कहना है कि निद्रा की गहराई रात में एक या दो घण्टे के लिये ही आती है। इसीलिये तमाम रात सार्थक स्वप्न न देखकर वह अनुभूतियाँ बहुत थोड़े समय के लिये होती हैं। प्रातः काल जब बाह्य प्रकृति भी स्वच्छ हो जाती है और थोड़े समय के लिये मनुष्य भी गहरी निद्रा में उतरता है तो उसे ऐसे स्वप्न दिखाई देते हैं, जिनमें किन्हीं सत्य घटनाओं का पूर्वाभास मिलता है।

इसलिये कोई यदि यह तर्क दे कि यदि स्वप्न आत्मचेतना के प्रमाण हैं तो सबको ऐसे स्वप्न क्यों नहीं दिखाई देते तो उसका खण्डन इस उपरोक्त कथन से हो जायेगा। डॉ. क्वीटमन ने भी लिखा है कि अस्त−व्यस्त स्वप्न प्रायः भोजन में गड़बड़ी के कारण होते हैं। तीखे और उत्तेजक पदार्थों के सेवन से शरीर की स्थूल प्रकृति उत्तेजित बनी रहती है, इसलिये स्वप्न साफ नहीं दीखते पर चेतना जैसे ही गहराई में उतर जाती है, सार्थक स्वप्नों का क्रम चल पड़ता है।

इस तरह के स्वप्न के लिये एक बार पोलैण्ड में व्यापक हलचल उठ खड़ी हुई थी और तबसे वहाँ के सैंकड़ों लोग इस जिज्ञासा में हैं कि वह कौन−सा तत्त्व है, जो मनुष्य को गहन एकाकीपन में भी समीपता का दिग्दर्शन कराता है। कौन−सी चेतना है जो निद्रा में भी सच्ची घटनाओं का आभास कराती है।

जिस घटना ने इस जिज्ञासा को जन्म दिया वह अपने आप में बड़ी रोचक है। मेरना नामक एक पोलिश युवती का एक युवक के साथ विवाह संबंध निश्चित किया गया युवक सेना का सिपाही था। विवाह होने से कुछ दिन पूर्व ही जब वह छुट्टी पर घर आया हुआ था, एकाएक युद्ध छिड़ गया और उसे जेरनैक नगर छोड़कर अपनी बटालियन के लिये प्रस्थान कर जाना पड़ा, मेरना ने अश्रुपूरित हृदय से विदाई तो दी पर उसके हृदय में युवक के प्रति प्रेम की घनिष्ठता छा गई थी। उसने सच्चे हृदय से आत्म−समर्पण किया था, इसलिये उसे हर क्षण अपने भावी पति की याद आती रहती।

युवक स्टैनिस्लास आमेंस्की लौट तो आया पर प्रेम की पीड़ा उसे भी बार−बार मेरना तक खींच ले जाती, वह भी सदैव मेरना की याद किया करता। एक दिन वह शत्रु सेना में बुरी तरह घिर गया और सैंकड़ों अन्य सिपाहियों के साथ युद्ध की विभीषिका में न जाने कहाँ खो गया। काफी दिनों तक उसके बारे में कुछ भी पता न चला।

डॉ. क्लीटमन के सहायक यूगेन एसेरिन्सकी ने स्वप्नों पर अपना विश्लेषण प्रस्तुत करते समय एक स्थान पर लिखा है कि मनुष्य निद्रावस्था में स्वप्न देखता है तो स्वप्न की तीव्रता के अनुपात में उसकी पुतलियाँ भी घूमती हैं, एक रात में पाँच−2 बार यह पुतलियाँ घूमती हुई पाई गई हैं, और घंटों तक यह क्रिया होती रहती है, साथ ही स्वप्न के दृश्यों में उठने वाले संवेग हृदय आदि मर्मस्थलों को भी प्रभावित करते हैं, उससे भी स्पष्ट है कि स्वप्न का मनुष्य से घनिष्ठ संबंध बना रहता है। आत्मा शरीर में भी होती है और वह किसी विलक्षण गति या स्वरूप में उस दृश्य वाले स्थान में भी होती है। मेरेना जब भी यह स्वप्न देखती शारीरिक संवेग इसी तरह की अवस्था में होते। आश्चर्य कि प्रतिदिन उसे रात्रि के अन्तिम प्रहर यही स्वप्न दिखाई देता।

मेरेना ने दूसरे दिन भी वही स्वप्न देखा। तीसरे दिन भी और लगातार वही स्वप्न। उसकी आँखों में दिन रात वही किला और स्टेनिस्लास का निराश दृश्य घूमता, वह जिससे भी मिलती एक ही चर्चा करती। इस घटना का वर्णन प्रकाश में लाने वाले डॉ. फ्रैक एडवर्ड्स ने लिखा है, अन्त में इस युवती को पागल की संज्ञा दे दी गई। कुछ लोगों को उससे सहानुभूति भी हुई पर पोलैंड शाही किलों का सुप्रसिद्ध देश है। किस किले में खोज की जाती। सहानुभूति के अतिरिक्त और कोई सहयोग भी क्या करता।

एक दिन मेरना घर से निकल पड़ी। उसने निश्चय किया कि वह अपने स्वप्न को सच्चा साबित करेगी और अपने भावी पति का ढूँढ़ निकालेगी। कई महीने पैदल यात्रा करती हुई मेरना ने अनेक किलों के दर्शन कर लिये पर स्वप्न के किले से संगति खाने वाला किला अभी दूर था। मार्ग में उसे लोग गरीबनी समझकर जो कुछ खाने को दे देते वह खा लेती। भगवान् के भरोसे मेरना इसी तरह चलती रही।

पर मेरना पर उसका कुछ प्रभाव नहीं पड़ा। वह उठ खड़ी हुई और किले की ओर दौड़ी। लोग उसके पीछे हो लिये। मेरना किले के उस भाग में जा पहुँची, जहाँ सचमुच ईंटों का मलबा भरा पड़ा था, वह तेजी से उसके पत्थर हटाने लगी। उन लोगों में कुछ समझदार भी थे, उन्होंने मेरना का साथ दिया। आधे से ज्यादा पत्थर निकल गये तो सचमुच भीतर जाने का एक दरवाजा निकल आया और अब तक भीतर किसी आदमी की आवाज स्पष्ट सुनाई देने लगी। एक आदमी को निकलने योग्य दरवाजा खुल गया, लोगों ने आश्चर्यचकित होकर देखा कि उसमें दबा हुआ व्यक्ति बाहर निकल आया, वह स्टेनिस्लास ही था। इतने दिन तक अंधकार में दबे रहने के कारण वह प्रकाश में चौंधिया रहा था। कपड़े फट गये थे। शरीर क्षीण हो गया था।

उसने बताया कि जिस समय वह स्टोर की रक्षा कर रहा था, शत्रु सेना के एक गोले से यह स्थान धराशायी हो गया था, वह इतने दिन मोमबत्तियाँ जलाकर रहा। खाने के लिये सूखे बिस्कुट और पीने के लिये शराब थी, उसी के सहारे वह किसी तरह जिन्दा बना रहा। इस घटना का सैनिक अधिकारियों पर बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने स्टेनिस्लास को ससम्मान सेना से निवृत्त कर दिया और मेरना के साथ उसका विवाह भी करा दिया गया। इस घटना ने सारे पोलैण्ड को यह सोचने के लिये विवश किया कि जीवन में कुछ गहराई और तथ्य भी हैं, स्वप्न उसका दिग्दर्शन कराते रहते हैं, इन तथ्यों की किसी भी स्थिति में उपेक्षा नहीं की जा सकती।

इदं जाग्रदयं स्वप्न इतिनास्येव भिन्नता। सत्ये वस्तुनि निःशेष समयोर्यानिभूतितः॥

—6।2।161।24,

आदिरुर्गेहि चित्स्यप्नो जाग्रदित्यभिशब्धते। अद्यः रात्रौ चितेः स्वप्नः स्वप्न इत्यभिधीयते॥

—6।2।55।9

स्वप्न और जागृत अवस्था में कोई भेद नहीं है। दोनों का अनुभव सर्वथा समान है। सर्ग के आदि में आत्मा का स्वप्न जागृत कहलाता है और सर्ग में रहते हुये स्वप्न कहलाता है। दोनों स्थितियों में आत्मा की स्थिति और अस्तित्व समान है।

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